सांपों को बचाने की मुहिम में लगा यह शख्स…
हरदोई — महज सांपों को देखकर आपके आसपास होने की कल्पना से आम इंसान की रूह फना हो जाती हो और सांप की जहरीली फुफकार से शरीर के रोए रोए खड़े हो जाते हो लेकिन उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में एक ऐसा शख्स भी हैं जो सांपों के साथ दोस्ती रखता है और उनको पालता पोसता भी हैं।
जहरीले साँपो का संरक्षण करके उनको बचाने की मुहिम का असर है कि हरदोई के कुछ गांवों में सांप के दिखने पर लोग उसे मारते नहीं है अलबत्ता सांपों के संरक्षण में जुटे हैं उस शख्स को फोन करके बुला लेते हैं जो इन जहरीले सांपों के संरक्षण का काम कर रहे हैं।
गले में सांप हाथों में सांप और सांप से खेलता यह शख्स कोई सपेरा नहीं है बल्कि पेशे से यह अध्यापक हैं। बच्चों को शिक्षा देने के साथ-साथ इनको अपने इस अजीबोगरीब शौक के लिए इलाके में प्रसिद्धि मिली है। सांपों को चाहे वह जहरीले हो या बिना जहर के हो उनको भी पालने-पोसने का काम करते हैं।
दरअसल हरदोई के कोरिया गांव के मजरा मढ़िया के रहने वाले 30 साल के आचार्य शैलेंद्र राठौर। अपने परिवार के तीन भाइयों में सबसे बड़े है। शैलेंद्र का बच्चों को पढ़ाने के साथ सांपों को संरक्षित करने का यह शौक बचपन में ही लग गया था।बताया जाता है कि जब गांव में इनके मकान के पास एक सांपों का जोड़ा निकला तो इन्होंने उनमें से एक सांप को मार दिया जबकि दूसरा सांप वहीं उस मरे साँप के पास सर झुका के बैठ गया। दुसरे सांप का यह समर्पण भाव देखकर इन्होंने उसी दिन से अपना जीवन इन जहरीले साँपो के लिए समर्पित कर दिया।
12 साल की उम्र में वह पहला साँप जिसे इन्होंने पकड़ा और घरवालों के बगैर जानकारी में लाए अपने पास रख लिया। उसी दिन से इनको सांपों के साथ रहने का शौक हो गया। जैसे ही गांव या अगल-बगल के गांव में कोई सांप निकलने की सूचना मिलती शैलेंद्र वही पहुंच जाते हैं और बड़ी आसानी से सांप को अपने कब्जे में ले लेते हैं। ऐसा भी नहीं है कि शैलेंद्र पर सांपों ने हमला नहीं किया अपने शौक के मारे ब्लैक कोबरा से लेकर रसेल वाइपर तक इनको दो बार काट चुके है। जिसके निशान आज भी इनकी हाथों पर मौजूद हैं लेकिन शायद सांपों का संरक्षित करने का इनका यह शौक था जिसकी वजह से मेडिकल ट्रीटमेंट पाकर शैलेंद्र सही हो गए।
इतना जरूर हुआ कि उसके बाद से यह जहरीले सांपों को पकड़ने में थोड़ी एतिहात जरूर बरतने लगे। सांपों के रखवालों के रूप में प्रसिद्ध हो चुके शैलेंद्र अपने गांव के अलावा अगल-बगल के कई कोसों दूर गांव तक में सांपों की जान बचाने और उनके संरक्षण के लिए प्रसिद्धि पा चुके हैं। ऐसे में जहां भी कहीं कोई सांप निकलता है लोग तुरंत शैलेंद्र को सूचना दे देते हैं और शैलेंद्र उस सांप को पकड़कर अपने पास रखते हैं। शैलेंद्र के इस शौक में शैलेंद्र के कुछ दोस्त भी उनकी मदद करते हैं और शैलेंद्र के तरह वह लोग भी सांपों के साथ दोस्ताना व्यवहार ही रखते हैं।
हालांकि शैलेंद्र के इस खतरनाक शौक से उनके माता और पिता बहुत दुखी रहते हैं और लगातार उनसे सांपों के बीच में न रहने की ही बात कहते हैं। लेकिन घर के बाकी लोग शैलेन्द्र की इस ख्याति के कारण अच्छा महसूस करते है। धुन के पक्के शैलेंद्र अपने शौक के कारण अपने पैतृक मकान से कुछ दूर पर अपने दूसरे मकान में अपने सांपों के संग ही रहते हैं।