सड़क पर गोलगप्पे बेचने वाले यूपी के 17 वर्षीय यशस्वी ने जड़ा दोहरा शतक

17 वर्ष और 292 दिन के यशस्वी ने डबल सेंचुरी जड़ने वाले दुनिया के सबसे युवा बल्लेबाज

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न्यूज डेस्क — विजय हजारे ट्रॉफी ‘ए’ ग्रेड क्रिकेट में झारखंड के खिलाफ दोहरा शतक (203) जडकर सुर्खियों बटोरने वाले मुंबई के 17 साल के यशस्वी के चर्चे पूरी क्रिकेट बिरादरी में भले ही आज हो रहे हों लेकिन यह भी सच है कि 17 साल के इस युवा क्रिकेट ने मुंबई में भूखे पेट रात गुजारी और सड़को पर गोल गप्पे तक बेचे ताकि अपने क्रिकेट जुनून को पूरा कर सके।

कम उम्र में दोहरा शतक जड़ रचा इतिहास

मुंबई के युवा बल्लेबाज यशस्वी जायसवाल ने बुधवार को बेंगलुरु में विजय हजारे ट्रोफी के मैच में झारखंड के खिलाफ 154 बॉल पर 203 रनों की तूफानी पारी खेल इतिहास रच दिया है। ऐसा करके 17 वर्ष और 292 दिन के यशस्वी लिस्ट-ए वनडे मैचों में डबल सेंचुरी जड़ने वाले दुनिया के सबसे युवा बल्लेबाज बन गए।इस दौरान उन्होंने 12 छक्के जड़े, जो इस टूर्नमेंट में एक रेकॉर्ड है। इसी साल लिस्ट-ए में यशस्वी ने आगाज किया था।

दरअसल टीम इंडिया में खेलने का सपना लेकर मुंबई आए यशस्वी जायसवाल मूल रूप से भदोही (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले हैं। पिता की छोटी सी दुकान है, जिससे बमुश्किल परिवार का गुजारा हो पाता है। जब यशस्वी की उम्र केवल 11 बरस की थी, तब मुंबई में रहने वाले चाचा के पास आ गए ताकि एक दिन भारतीय क्रिकेट टीम में खेलने के सपने को साकार कर सके।

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टेंट में गुजारे तीन साल

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मुंबई में चाचा का घर इतना बड़ा नहीं था कि वहां 11 साल के बच्चे को सोने की जगह मिल सके। अब उसका नया आशियाना बना काल्बादेवी डेयरी, जहां वह काम भी करता था। लेकिन एक दिन उसे डेयरी से भी इसलिए भगा दिया क्योंकि क्रिकेट खेलने के बाद वह थक जाने की वजह से सो जाया करता था। इसके बाद एक क्लब मदद के लिए आगे आया, लेकिन शर्त रखी कि अच्छा खेलोगे तभी टेंट में रहने देंगे। यशस्वी ने यहां पूरे तीन साल टेंट में गुजारे। हालांकि इस बारे उसके परिवार वाले नहीं जानते थे यदि पता लग जाता तो वे उसे वापस भदोही ले जाते और बीच में क्रिकेटर बनने का सपना दम तोड़ देता।

सपनो को पंख देने के लिए बेचे गोल गप्पे

मुंबई में जिंदगी आसान नहीं थी क्रिकेटर बनने के सपने को पूरा करने के लिए यशस्वी ने गोल गप्पे बेचे लेकिन इस जद्दोजहद के बाद भी कई रातें उसने भूखे पेट गुजारी। वे आजाद मैदान के बाहर अपने चाचा की रेहड़ी पर गोल गप्पे बेचते थे। एक इंटरव्यू में यशस्वी ने बताया था कि रामलीला के वक्त मेरी गोल गप्पे से अच्छी कमाई हो जाया करती थी। मुझे उस वक्त बहुत शर्म आती थी, जब कोई क्रिकेटर गोल गप्पे की रेहड़ी पर आ जाता था।

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कोच ज्वाला सिंह ने यशस्वी की प्रतिभा को पहचाना

आजाद मैदान में क्रिकेट खेलने वाला हरेक शख्स जानता था कि यशस्वी जायसवाल नाम के इस बाल क्रिकेटर ने कितनी मेहनत की है और उसे मदद की सख्त जरूरत है। सबसे पहले ज्वाला सिंह ने उसकी प्रतिभा को पहचाना। ज्वाला भी उत्तर प्रदेश से छोटी सी उम्र में मुंबई आए थे,‍ लिहाजा उन्हें यशस्वी में अपना बचपन नजर आया। 11-12 साल की उम्र में उन्हीं की कोचिंग में यशस्वी का खेल निखरता चला गया। आज वो इस मुकाम तब पहुंच गया है कि हर कोई उसकी प्रशंसा कर रहा है।

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