वाह रे मुसलमान ! वोट तुम्हारा और तुम्हें सियासी तौर पर बेच रहा यादव परिवार
लखनऊ — देश के सबसे बड़े सूबे यूपी में सियासी नज़रिये से बहुत ही कमज़ोर माने जाने वाले मुसलमान के फ़ैसलों पर रोना ही आता है। हालाँकि यूपी में मुसलमानों की आबादी 20% से ज़्यादा है लेकिन उसकी सियासी हैसियत एक बँधवा मज़दूर की बनी हुई है।
यही वजह है कि पिछले लोकसभा चुनाव में उसका एक भी प्रत्याशी लोकसभा नही पहुँच पाया था इसके बावजूद भी मुसलमान अपने रूख में कोई बदलाव लाने की कोशिश नही कर रहा क्या यही हाल अब लोकसभा चुनाव 2019 में भी होने जा रहे है ?
कई सियासी मुस्लिम लोगों से बात करने के बाद यह दर्द निकलकर आया कि हम इसी तरह बेचे जाते है और हम ख़ुश है। असल में सपा कंपनी के सियासी मैदान में आने से पहले हमें कांग्रेस इस्तेमाल करती आई और अब हम सपा कंपनी के बँधवा मज़दूर बने चले आ रहे है बसपा और सपा कंपनी के बीच हुए सियासी गठजोड़ में जो बात निकल कर सामने आई कि बसपा ने तो अपने दलित वोटों को आधार बनाकर समझौता करने कि पहल की परन्तु सपा ने किस आधार पर बसपा से समझौता किया है। क्या मात्र 8% यादव को आधार बनाकर 22% दलितों वाली पार्टी बसपा से समझौता किया है।बसपा की समझौता करने की बात तो समझमें आती है कि उसका अपना वोटबैंक है उसे हक़ भी है परन्तु सपा ने अपने बँधवा मज़दूर मुसलमानों को ही आधार बनाया है बसपा ने भी मुसलमानों की वजह से सपा से समझौता किया है नही तो शायद ही बसपा सपा से समझौता करती।
इस पर यही कहा जा सकता है कि वा-रे मुसलमान वोट तुम्हारा और तुम्हें सियासी तौर पर बेचने का काम सपा कंपनी के सीईओ अखिलेश यादव कर रहे है या यूँ कहे कि काफ़ी दिनों से तुम्हें यादव परिवार ही बेचता आ रहा है और आप बिक रहे हो।बेच रहे है इसमें कोई ख़ासबात नही है परन्तु उनसे अपने बिकने का हिसाब किताब तो माँग ही सकते है लेकिन नही मुसलमान ने या उनके स्वयंभू नेताओं ने सपा या कांग्रेस से कभी यह मालूम करने की जुरूरत महसूस नही समझी या जानबूझकर नही लिया यह तो वही सही जानते होगे कि उन्होंने क्यों नही किया ? क्या मुसलमानों की दर्दनाक दुर्दशा के लिए उनके स्वयंभू नेता ही ज़िम्मेदार है ?
रंगनाथ मिश्रा आयोग व राजेन्द्र सच्चर कमैटी की रिपोर्ट इसकी दलील है कि मुसलमान किस दशा में पहुँच गया है यह बात किसी से छिपी नही है फिर भी मुसलमान या उसके नेता समझने या समझाने को तैयार नही है।मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण ज़्यादातर गठबंधन के पक्ष में होने की संभावनाओं से इंकार नही किया जा सकता परन्तु अगर मुसलमान बँधवा मज़दूर बनना बंद कर दे तो शायद उसके हालात सुधर जाए। लेकिन उसको आदत हो गई है इसी तरह रहने और सहने की , उसके लिए कोई कुछ नही कर सकता जो अपने विकास की खुद नही सोचता है।
यूपी में मुसलमान बहुत ही भारी तादाद में है उसके बाद भी उसका सियासी कोई वजूद नही है यह बड़ी शर्म की बात है मुसलमानों के लिए भी और उसके नेताओं के लिए भी उसकी सोच बस थाने पुलिस तक महदूद कर दी गई है न उसके लिए अच्छी शिक्षा की बात होती है न रोज़गार की बात होती है न उसके लिए अच्छी चिकित्सा की बात होती है हाँ अगर बात होती है तो थाने और पुलिस की बात होती है। यहाँ यह सवाल भी उठता है कि क्या सारा मुसलमान ग़लत धन्धों में संलिप्त है ऐसा भी नही है कुछ लोग है जो ग़लत कामों को करते है बस उनके लिए पूरे मुसलमानों को मँझधार में छोड दिया जाए यह बिलकुल ग़लत है।
यहाँ यह भी बताना उचित है कि जो लोग सही है वह उन कुछ लोगों की ख़ातिर अपनी क़ुर्बानी दे रहे है वह अपने आपको पीछे कर लेते है जिससे मुसलमानों का विकास बाधित हो रहा है मुसलमानों को चाहिए कि जो लोग ग़लत है उनको पीछे कर अपने लिए टेबल टोक करे कि हमारे विकास के लिए आपका क्या एजेंडा है ? जब आप उनके एजेंडे से सहमत हो तो उनको वोट करे समय-समय पर समीक्षा भी करे कि क्या वह दल या नेता उस दिशा में काम कर रहा है जो उसने हमसे वायदे किए थे तो ठीक और अगर कर नही रहा तो उसको सबक़ सिखाओ तब वह सही हो जाएँगे कि अब पहले की तरह काम नही चलेगा जो कहा वह करना पड़ेगा।
लेकिन अगर वास्तव में ही मुसलमानों की दूरदर्शा को दूर या खतम करनी है तो 99% मुसलमान जो सही है उसे जागना होगा और अपनी तरक़्क़ी के लिए सवाल उठाने होगे तभी जाकर कुछ हो पाएगा नही तो इससे भी बत्तर हालात के लिए मुसलमानों को तैयार हो जाना चाहिए।
1% मुसलमानों के लिए पूरे मुसलमानों को अपने अच्छे भविष्य के लिए क्या क़ुर्बानी देनी चाहिए ? प्रदेश की ऐसी पच्चीस सीट लोकसभा की है जहाँ मुसलमान सही फ़ैसला कर चुनाव जिता सकता है लेकिन इस बार मुसलमान गठबंधन को ही पसंद करेगा ऐसा ही लगता है ? जब बसपा का सहारा ही लेना था तो सीधे क्यों नही गए सपा को क्यों बेचने का मौक़ा दिया है जब मुसलमानों के यह बात समझमें आ रही है कि बिना बसपा के काम नही चल सकता तो सीधे बसपा में क्यों नही गए?
सपा को क्यों बिचौलियां बनाया ? 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा को मिली हार के बाद सपा ने मुसलमानों के लिए कौन सी आवाज बुलंद की चाहे पशुवधशालाओं को बंद करने का मामला हो या मोदी की भाजपा का सियासी हथियार तलाक का मामला हो या प्रदेश में कानून व्यवस्था के नाम पर फ़र्ज़ी एनकाउंटर रहे हो किसी भी इश्यू पर मुखर होकर आवाज उठाई हो ऐसा कुछ नही किया हाँ कुछ यादव सिपाहियों के तबादलों पर चिख निकल गई थी और ज़ोर शोर से यह आवाज उठाई थी कि जाति विशेष के सिपाहियों पर ज़ुल्म हो रहा है।
(लखनऊ से तौसीफ कुरैशी की रिपोर्ट)