पति की लंबी उम्र के लिए सुहागिनों ने रखा व्रत, जानें क्यों की जाती है वट सावित्री पूजा
न्यूज डेस्क–पति की लम्बी आयु के सुहागिन महिलाएं आज के दिन वट वृक्ष की पूजा अर्चना की। सुहागिनों ने पति की लम्बी उम्र और सुख शांति के लिए वट वृक्ष की पूजा की। नव विवाहिताओं में वट सावित्री पूजा को लेकर खास उत्साह दिख रहा है।
वट वृक्ष को आम, लीची सरीखे मौसमी फल अर्पित करने, कच्चे सूत से बांधने और बियेन (हथ पंखा) से ठंडक पहुंचाने के बाद महिलाओं ने आस्था के साथ इसकी परिक्रमा की। पूजा के बाद वट सावित्री कथा भी सुनी जाती है| जेयष्ठ मास के आमावस्या के दिन पड़ने वाले इस पर्व मे सुहागिन महिलाओं ने पुजा की थाली सजाकर वट वृक्ष की बारह बार परिक्रमा की और फल फुल चढ़ाकर सुख समृद्धि और पति की लंबी आयु की कामना करती है |
इस व्रत की महत्ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि घरों से नई नवेली दुल्हनों के साथ सुहागिन महिलाएं बरगद पेड़ के नीचे पहुंच सुबह से ही पूजा अर्चना करने में लगी रही।व्रती महिलाओं के अनुसार इस व्रत को सबसे पहले सावित्री ने अपने पति सत्यवान की प्राण को यमराज से वापस मांगकर लाई थी जब से इस व्रत को सुहागिने करती चली आ रही है। वट सावित्री व्रत में महिलाएं 108 बार बरगद की परिक्रमा करती हैं। कहते हैं कि गुरुवार को वट सावित्री पूजन करना बेहद फलदायक होता है। इस दिन महिलाएं सुबह से स्नान कर लेती हैं और सुहाग से जुड़ा हर श्रृंगार करती हैं।
ये है कारणः
वट अमावस्या के पूजन की प्रचलित कहानी के अनुसार सावित्री अश्वपति की कन्या थी, उसने सत्यवान को पति रूप में स्वीकार किया था। सत्यवान लकड़ियां काटने के लिए जंगल में जाया करता था। सावित्री अपने अंधे सास-ससुर की सेवा करके सत्यवान के पीछे जंगल में चली जाती थी।
एक दिन सत्यवान को लकड़ियां काटते समय चक्कर आ गया और वह पेड़ से उतरकर नीचे बैठ गया। उसी समय भैंसे पर सवार होकर यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए। सावित्री ने उन्हें पहचाना और सावित्री ने कहा कि आप मेरे सत्यवान के प्राण न लें। यम ने मना किया, मगर वह वापस नहीं लौटी। सावित्री के पतिव्रत धर्म से प्रसन्न होकर यमराज ने वर रूप में अंधे सास-ससुर की सेवा में आंखें दीं और सावित्री को सौ पुत्र होने का आशीर्वाद दिया और सत्यवान को छोड़ दिया। वट पूजा से जुड़ी है धार्मिक मान्यता के अनुसार ही तभी से महिलाएं इस दिन को वट अमावस्या के रूप में पूजती हैं।