‘कोमल है कमज़ोर नहीं’ को चिकित्सा जगत में सार्थक करती नारी !
( श्वेता सिंह )
“मुहब्बतों की हंसी ज़िन्दगी हैं आप,
यकीन कहता है कि खुदा की खुदाई हैं आप। “
आज की नारी एक ओर आसमान की ऊंचाइयां छू रही है तो दूसरी ओर समुद्र की गहराई भी माप रही है। ऐसे में एक ऐसा क्षेत्र भी है ; जहाँ प्रायः एक इंसान को भगवान का दर्ज़ा दे दिया जाता है ; वह क्षेत्र है – चिकित्सा। आज की नारी लोगों की ज़िन्दगी बचाने के लिए , उन्हें अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के लिए इस क्षेत्र में तेज़ी से आगे बढ़ रहीं है। चिकित्सा क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति पर डालते हैं एक नज़र –
जिस प्रकार सैनिक देश की रक्षा करते हैं ; उसी प्रकार डॉक्टर भी लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा करके एक प्रकार से देश सेवा का ही कार्य करते हैं। चिकित्सा क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है ; जो प्रायः मरते हुए लोगों की जीवनरक्षा के लिए प्रसिद्ध है। चिकित्सा एक सामाजिक कार्य की तरह है।
भारतीय समाज में प्राचीनकाल से ही पीड़ितों व रोगियों की सहायता एवं सेवा का प्रचलन रहा है और हर एक व्यक्ति एक दूसरे की सेवा करना अपना उत्तरदायित्व समझता रहा है। मानव समाज में निरंतर हो रहे परिवर्तन , औद्योगीकरण , नगरीकरण के फलस्वरूप दिन – प्रतिदिन सामाजिक व आर्थिक जटिलताओं के कारण व्यक्ति की अपनी व्यक्तिगत एवं पारिवारिक व्यस्तता के चलते उत्पन्न रोगों के निवारण में चिकित्सकीय समाज काफी तीव्र गति से आगे आ रहा है। हमारा चिकित्सक वर्ग स्वास्थ्य के विकास , रोग – निवारण व उपचार के माध्यम से लोगों की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहता है।
इसी कड़ी में हमारी नारी – शक्ति भी इस कार्य में आज किसी से भी पीछे नहीं है। मदर टेरेसा का चिकित्सा के माध्यम से समाज कार्य तो जग – प्रसिद्ध है ही ; साथ ही ऐसी कई हस्तियां हैं जो इस क्षेत्र के माध्यम से लोगों के स्वास्थ्य का ध्यान रखती हैं। पुणे शहर में जन्मी आनंदीबाई जोशी पहली भारतीय महिला थीं, जिन्होंने डॉक्टरी की डिग्री ली थी। जिस दौर में महिलाओं की शिक्षा भी कठिन हुआ करती थी , ऐसे में विदेश जाकर डॉक्टरी की डिग्री हासिल करना अपने आप में एक मिसाल है। आनंदीबाई के अंदर डॉक्टर बनने का जज्बा तब उफान लेने लगा जब 14 साल की उम्र में वो माँ बनीं और उनकी एकमात्र संतान की मृत्यु मात्र 10 दिनों में ही हो गयी। इस घटना से उन्हें बहुत बड़ा झटका लगा और उसी समय उन्होंने प्रण कर लिया कि वह एक दिन डॉक्टर बनेंगी और ऐसी असमय मौत को रोकने का प्रयास करेंगी। उस समय के दकियानूसी समाज ने उनकी काफी आलोचना की कि एक शादीशुदा हिन्दू स्त्री विदेश जाकर डॉक्टरी की पढ़ाई करेगी। आनंदीबाई ने किसी की भी परवाह नहीं की और अपने सपनों को सच्चाई के धरातल पर सार्थक करके न सिर्फ डॉक्टर बनीं बल्कि देश की पहली महिला डॉक्टर होने का गौरव भी प्राप्त किया। उनका उस सदी में इस तरह का हौसला वाकई काबिले – तारीफ था। उनका व्यक्तित्व आज भी महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत है। इसी तरह चिकित्सकीय इतिहास को खंगालने पर दो नाम और प्राप्त होते हैं- कादम्बिनी गांगुली और आनंदी गोपाल जोशी ; इन्होंने पश्चिमी दवाओं में प्रशिक्षित होने वाली पहली भारतीय महिलाएँ होने का गौरव प्राप्त किया। डॉ. मुत्तुलक्ष्मी ने सर्जरी ( शल्य- चिकित्सा ) के क्षेत्र में विशेष योग्यता हासिल की और किसी भारतीय विश्वविद्यालय से चिकित्सा के क्षेत्र में स्नातक की परीक्षा पास करने वाली पहली भारतीय महिला बन गयीं। भारत सहित समूचे विश्व में ऐसे कई उदहारण हैं जो महिलाओं को चिकित्सा क्षेत्र में आने के लिए प्रेरित करते हैं। वर्तमान परिदृश्य में महिलाओं के इस क्षेत्र में आने की राह में कठिनाईयां थोड़ी कम हो गयी हैं। रीता बख्शी, अनीता कृपलानी , इंदिरा हिंदुजा , शीला मेहरा , लक्ष्मी सहगल, कामिनी राव आदि वो प्रसिद्ध नाम हैं जो स्त्री रोग विशेषज्ञ बनकर महिलाओं की स्वास्थ्य संबंधी सहायता कर रहीं हैं और शल्य- चिकित्सा से जुड़े कुछ प्रमुख महिला नाम हैं -वंदना जैन , मृदुभाषिनी गोविंदराजन , टी. एस. कनाक आदि। आज की युवा लड़कियां भी इस क्षेत्र में आने के लिए उत्सुक रहती हैं और नए नए कीर्तिमान रच रहीं हैं।
भारत का संविधान सभी भारतीय महिलाओं को समान अधिकार ,राज्य द्वारा कोई भेदभाव नहीं करने , अवसर की समानता , समान कार्य के लिए समान वेतन की गारंटी देता है और भारतीय नारी अपने कर्तव्यों और अधिकारों के प्रति जागरूक हो रही है। आज महिला डॉक्टरों को भी समाज में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। प्रायः लोग कहते हैं कि महिलाएँ कोमल हृदय की होती हैं और उनके लिए ये क्षेत्र ठीक नहीं होता क्योंकि किसी का ऑपरेशन करना उनके लिए थोड़ा मुश्किल कार्य हो जाता है; लेकिन आज की नारी जिस तादाद में इस क्षेत्र में प्रवेश कर रही हैं ; वो संख्या लोगों के इस भ्रम को तोड़ रही है और साबित कर रही है कि- ‘कोमल है कमज़ोर नहीं , शक्ति का नाम ही नारी है’। आज जहाँ एक ओर महिलाएँ ऊँचाईयाँ छू रहीं हैं वहीं कुछ नारियां ऐसी भी हैं जो अपने लिए मिलने वाली सुविधाओं से वंचित रह जाती हैं।
आज ग्रामीण परिवेश में लड़कियां डॉक्टर बनना चाहती हैं , लेकिन उनका आर्थिक पक्ष उनके क़दमों को रोक देता है। चिकित्सा क्षेत्र की शिक्षा पर अत्यधिक खर्च उनके मन में अपने भविष्य को लेकर कशमकश पैदा कर देता है। ऐसे में सरकार को तथा चिकित्सा – शिक्षण संस्थानों को उन लड़कियों की मदद के लिए कुछ सकारात्मक कदम उठाने होंगे ; जिससे वो भी अपनी प्रतिभा को सिद्ध कर सकें। कई महिलाएं अपनी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को पुरुष डॉक्टर से बताने में हिचकिचाती हैं और ऐसे में तो ये और भी जरूरी हो जाता है कि एक महिला डॉक्टर भी प्रत्येक क्लीनिक एवं अस्पताल में मौजूद रहे। इसके लिए स्वयं नारी को ही आगे कदम बढ़ाने होंगे और सामने आने वाली परेशानियों को पार करना होगा।