“यूपी समाचार” स्पेशल : इस बहादुर बेटी ने अपनी जान गवांकर बचाई थी दो मासूमों की जान

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नई दिल्ली– हम में से अधिकतर इतिहास पढ़ते हैं, लेकिन कुछ ही होते हैं जो इतिहास बनाते हैं। इस तरह किसी न किसी इतिहास को जन्म देने वाले ही पुरस्कार के हकदार भी होते हैं। भारत में बच्चों को दिया जाने वाला राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार सबसे सम्मानित पुरस्कार माना जाता है। “यूपी समाचार” वर्ष 2018 में गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर सम्मानित होने वाले बच्चों के बारे में आपको रूबरू करवाने जा रहा है। 

 ये है इस पुरस्कार की शुरुआत की कहानी :

2 अक्टूबर,1957 में 14 साल की उम्र के बालक हरीश मेहरा ने अपनी जान की परवाह किए बगैर पंडित नेहरू और तमाम दूसरे गणमान्य नागरिकों को एक बड़े हादसे से बचाया था। उस दिन पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी, जगजीवन राम आदि रामलीला मैदान में चल रही रामलीला देख रहे थे कि अचानक उस शामियाने के ऊपर आग की लपटें फैलने लगीं, जहां ये हस्तिय़ां बैठी थीं। हरीश वहाँ पर वॉलंटियर की ड्यूटी निभा रहे थे। वे फौरन 20 फीट ऊंचे खंभे के सहारे वहां चढे तथा अपने स्काउट के चाकू से उस बिजली की तार को काट डाला, जिधर से आग फैल रही थी। यह कार्य करने में हरीश के दोनों हाथ बुरी तरह झुलस गए थे। एक बालक के इस साहस से नेहरु अत्यधिक प्रभावित हुए और उन्होंने अखिल भारतीय स्तर पर एसे बहादुर बच्चों को सम्मानित करने का निर्णय लिया। सबसे पहला राष्‍ट्रीय वीरता पुरस्‍कार हरीश चंद्र मेहरा को प्रदान किया गया था।

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राष्‍ट्रीय वीरता पुरस्कार भारत में हर वर्ष 26 जनवरी की पूर्व संध्या पर बहादुर बच्चों को दिए जाते हैं। भारतीय बाल कल्याण परिषद ने 1957 में ये पुरस्कार शुरु किये थे। पुरस्कार के रूप में एक पदक, प्रमाण पत्र और नकद राशि दी जाती है। सभी बच्चों को विद्यालय की पढ़ाई पूरी करने तक वित्तीय सहायता भी दी जाती है। 26 जनवरी के दिन ये बहादुर बच्चे हाथी पर सवारी करते हुए गणतंत्र दिवस परेड में सम्मिलित होते हैं।

बहादुर बेटी नेत्रवती चव्हाण को मरणोपरांत मिलेगा पुरस्कार :

इस बार राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित होने वाले बहादुर बच्चों के नाम की घोषणा हो चुकी है। इसबार ये पुरस्कार 18 बच्चों को दिया जा रहा है जिनमें 11 लड़के और 7 लड़कियां शामिल हैं। 

कर्नाटक की 14 साल की इस बहादुर बिटिया ने अपनी जान गंवाकर दो लड़कों को डूबने से बचा लिया। पिछले साल मई में नेत्रवती एक तालाब के पास कपड़े धो रही थी। उसके सामने दो लड़के तालाब में गए और करीब 30 फीट की गहराई में डूबने लगे। बिना एक पल गंवाए नेत्रवती ने तालाब में छलांग लगा दी। पहले उसने खुद से बड़े लड़के मुथू (16 साल) को बचाया। नेत्रवती इसके बाद गणेश (10 साल) को बचाने फिर तालाब में उतरी। रेस्क्यू के क्रम में गणेश ने जोर से उसका गला पकड़ लिया। नेत्रवती खुद को नहीं बचा पाई। देश को अपनी इस बहादुर बेटी पर हमेशा नाज रहेगा। नेत्रवती को मरणोपरांत गीता चोपड़ा अवॉर्ड दिया जाएगा। 

 

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