Tirupati Laddu: क्या है तिरुपति लड्डू विवाद ? जानें कौन मिला रहा था लड्डू में जानवरों की चर्बी ?

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Tirupati Laddu: तिरुपति मंदिर के लड्डू में जानवरों की चर्बी का मुद्दा गरमाता जा रहा है। अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। दरअसल, पूरा विवाद 18 सितंबर को शुरू हुआ, जब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और टीडीपी सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू ने आरोप लगाया कि तिरुपति के प्रसाद में जानवारों की चर्बी मिलाई जा रही है। उन्होंने कहा कि जिस कंपनी से मंदिर प्रशासन घी ले रहा था, उसे ब्लैक लिस्ट कर दिया गया है और मामले की विजिलेंस जांच की जा रही है।

तिरुपति मंदिर में 300 साल से चढ़ाए जा रहे लड्डू

दरअसल तिरुपति मंदिर में 300 साल से भी ज्यादा समय से लड्डू चढ़ाए जा रहे हैं। इन्हें ‘श्रीवारी लड्डू’ कहा जाता है। मान्यता है कि भगवान वेंकटेश्वर को लड्डू का प्रसाद बहुत पसंद है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, तिरुपति मंदिर का प्रबंधन करने वाली तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम यानी टीटीडी द्वारा बनाए गए लड्डू 15 दिन तक खराब नहीं होते।

लड्डू में मिलावट का शक कैसे पैदा हुआ?

आंध्र प्रदेश में जब एन. चंद्रबाबू नायडू की सरकार बनी तो तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) के पुराने कार्यकारी अधिकारी को हटाकर आईएएस अधिकारी के. श्यामला राव को नया ईओ नियुक्त किया गया। टीटीडी तिरुपति मंदिर का प्रबंधन करता है। राव के मुताबिक उन्हें शिकायत मिली थी कि प्रसाद के स्वाद में दिक्कत है और इसका स्वाद पहले जैसा नहीं है। इसलिए उन्होंने इसका सैंपल जांच के लिए भेजा।

मिलावट की जांच कब और कहां हुई?

9 जुलाई 2024 को तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) ने गुजरात के राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के तहत पशुधन और खाद्य प्रयोगशाला में विश्लेषण और अध्ययन केंद्र में जांच के लिए लड्डू के सैंपल भेजे। इसकी रिपोर्ट 16 जुलाई 2024 को आई। इस रिपोर्ट में मिलावट की पुष्टि हुई।

तिरुपति के लड्डू में क्या-क्या मिला?

नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, तिरुपति लड्डू में सोयाबीन, सूरजमुखी, जैतून, नारियल, कपास के बीज और अलसी के अलावा मछली का तेल, बीफ टैलो और लार्ड पाया गया (tirupati laddu lab report)। बीफ टैलो जानवरों की चर्बी से बनता है। चर्बी को धीमी आंच पर तब तक पकाया जाता है जब तक कि वह घी जैसा न दिखने लगे। इसी तरह लार्ड सूअर की चर्बी से बनता है। यह घी जैसा दिखता है और चिकना होता है। इसे शुद्ध घी में आसानी से मिलाया जा सकता है। इसका पता भी नहीं चलता।

मंदिर को कौन करता है घी सप्लाई

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तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम हर साल टेंडर के जरिए करीब 5 लाख किलो घी खरीदता है। अगर एक महीने की बात करें तो करीब 42000 किलो घी की खपत होती है। कंपनियां यह घी मंदिर प्रबंधन को रियायती दर पर मुहैया कराती हैं। पहले दावा किया गया था कि ‘नंदिनी’ नाम से घी बनाने वाली मशहूर दक्षिण भारतीय कंपनी कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (केएमएफ) घी सप्लाई करती थी। फिर अमूल का नाम भी सामने आया।

हालांकि, दोनों कंपनियों ने बयान जारी कर कहा है कि वे तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) को घी की आपूर्ति नहीं करते हैं। केएमएफ ने कहा कि वे पिछले 4 सालों से टेंडर में हिस्सा नहीं ले रहे हैं, क्योंकि वे घी के रेट को लेकर बोर्ड के साथ सहमति नहीं बना पाए थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जब प्रसाद में मिलावट की शिकायत हुई थी, तब एआर डेयरी फूड्स नाम की कंपनी तिरुपति मंदिर को घी की आपूर्ति कर रही थी। हालांकि, राज्य सरकार ने उसका स्टॉक वापस कर दिया था।

मंदिर किस दर पर घी खरीद रहा था?

तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम पिछली कंपनी से 320 रुपये प्रति किलो की दर से घी खरीद रहा था। अब राज्य सरकार कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (केएमएफ) से 475 रुपये प्रति किलो की दर से घी खरीद रही है। ‘नंदिनी’ केएमएफ का एक ब्रांड है।

लड्डू से कितनी होती है कमाई

तिरुपति मंदिर में प्रसाद के तौर पर दिए जाने वाले लड्डू में मुख्य रूप से बेसन, बूंदी, चीनी, काजू, अन्य सूखे मेवे और घी होता है। ये लड्डू अयंगर पंडित बनाते हैं। तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम हर साल लड्डू बेचकर करीब 500 करोड़ रुपये कमाता है।

इस तरह होता है घी के सप्लायर का चयन

तिरुपति में घटिया घी के इस्तेमाल का मामला पिछले साल भी सामने आया था। तब भी कर्नाटक मिल्क फेडरेशन के अध्यक्ष भीमा नायक ने दावा किया था कि टीटीडी जानबूझकर घटिया क्वालिटी का घी खरीद रहा है। तब टीटीडी के तत्कालीन कार्यकारी अधिकारी धर्म रेड्डी ने कहा था कि बोर्ड टेंडर के जरिए ही घी खरीदता है। ट्विन टेस्ट पास करने वाले सप्लायर को ही कॉन्ट्रैक्ट मिलता है। चयन एक कठिन टेंडर प्रक्रिया के जरिए होता है।


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