इस राजा ने शुरू की थी ‘कुंभ’ की परम्परा, जानें कौंन करते हैं पहला स्नान…

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न्यूज़ डेस्क–कुंभ मेला 2019 का आयोजन इलाहाबाद (प्रयाग) में किया जा रहा है, जो जनवरी 14, 2019 से मार्च 04, 2019 तक चलेगा।देश के सबसे बड़े धार्मिक मेले कुंभ की परम्परा कितनी प्रचीन है, इसका सही अनुमान लगाना कठिन है। 

इतिहास में कुम्भ के मेले का सबसे पुराना उल्लेख महाराजा हर्ष के समय का मिलता है, जिसको चीन के प्रसद्धि बौद्ध भिक्षु ह्रेनसान ने ईसा की सांतवी शताब्दी में आंखो देखे वर्णन का उल्लेख किया है।ह्वेंगसांग ने कहा है कि राजा हर्षवर्द्धन हर पांच साल में नदियों के संगम पर एक बड़ा आयोजन करते थे, जिसमें वह अपनापूरा कोष गरीबों और धार्मिक लोगों में दान दे देते थे। 

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ऐसी मान्यता है कि 7 हजार धनुष निरन्तर मां गंगा की रक्षा करते-रहते है, इन्द्र पूरे प्रयाग की रक्षा करते है। विष्णु भीतर के मण्डल की रक्षा करते है एंव अक्षयवट की रक्षा शिव जी करते है। खगोल गणनाओं के अनुसार यह मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारम्भ होता है, जब सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशि में और वृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रांति के होने वाले इस योग को “कुम्भ स्नान-योग” कहते हैं और इस दिन को विशेष मंगलकारी माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार इस दिन खुलते हैं और इस प्रकार इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति सहजता से हो जाती है। यहाँ स्नान करना साक्षात् स्वर्ग दर्शन माना जाता है।

 इनके स्नान के बाद होता है आगाज-

कुंभ का आगाज हमेशा अखाड़ों की पेशवाई के साथ होता है। पुण्यसलिला गंगा, यमुना और सरस्वती इन तीनों नदियों के संगम में नागा साधुओं के शाही स्नान से आगाज होकर महाशिवरात्रि तक लगभग 50 दिनों तक चलने वाले इस विशाल धार्मिक आयोजन में लगे हुए साधु संतों के शिविरों और तंबुओं से हवन के मंत्रों की ध्वनि और अनहद नाद से पूरा माहौल कुंभमय हो जाता है। 

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