योगी के राज में ठंडी सड़क बनी गन्दी सड़क…
फर्रुखाबाद— देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के साल पूरे हो गए हैं। मार्च 2017 को 14 साल के बाद बीजेपी यूपी में सत्ता में वापस लौटी थी.19 मार्च 2017 को मुख्यमंत्री का ताज योगी आदित्यनाथ के सर सजा था.और चुनाव में बड़े-बड़े वादे किए थे.
वहीं योगी सरकार के एक साल का सियासी सफर पूरा हो चुका है. नौकरी देने की दिशा में योगी सरकार पूरी तरह से फेल रही है. इसके बावजूद सरकार के दावे हैं कि उन्होंने सूबे की कायाकल्प के लिए कदम उठाए हैं. और नही फ़र्रुखाबाद की सड़को को गड्डा मुक्त किया ।
फ़र्रुखाबाद की सड़क पर दो-दो फीट गहरे और चौड़े गड्ढे, हिचकोले खाती गाड़ियां और उड़ती धूल,,,सुनने में भले ही ये स्थिति किसी गांव की सड़क की लगती हो, लेकिन असल में ये फर्रुखाबाद की सबसे व्यस्त सड़कों में से एक ठंडी सड़क है.वही ठंडी सड़क जो इस वक्त फर्रुखाबद की सत्ता के केंद्र में है और वही ठंडी सड़क जिसपर सत्ताधारी सांसद मुकेश राजपूत रहते हैं…इस सड़क से रोजाना हजारों लोग गुजरते हैं,,लेकिन सड़क का हाल देख कर ही आपको अंदाजा हो गया होगा कि इस सड़क को लेकर नेताओं और अधिकारियों का रुख कितना ठंडा है…सूबे में सत्ता बदले एक साल हो गयी लेकिन ठंडी सड़क का हाल पहले भी यही था, अब भी यही है.जबकि जिम्मेदार यूं ही अपने ठंडे रुख पर कायम रहे तो शायद आगे भी यही रहेगा,,
हम आपको आगे कुछ बताएं उससे पहले एक पुरानी तारीख याद दिलाना चाहते हैं, 14 सितंबर 2016, ये वो तारीख है, जब बीजेपी सांसद मुकेश राजपूत तमाम बीजेपी नेताओं और अपने समर्थकों के साथ धरने पर बैठे थे,और धरने पर बैठने का मुख्य कारण शहर की यही मुख्य सड़क ठंडी सड़क थी. तब सांसद मुकेश राजपूत ने सपा नेताओं के खिलाफ जमकर आवाज बुलंद की थी. और स्थानिय लोगों ने भी सांसद जी का भरपूर साथ दिया था. देते भी क्यों ना आखिर बात सालों ने खस्ताहाल पड़ी ठंडी सड़क की थी.
लेकिन इस एक साल में कुछ नहीं बदला सड़क के हाल तब भी वही थे और अब भी वही हैं. बदल गई है तो सिर्फ जिम्मेदारी पहले सपा को कोसते थे, और अब अपनी सरकार को कोसने में हिचकिचाहट है. हम आगे बढ़ें उससे पहले आपको वो पुरानी तस्वीर और सांसद मुकेश राजपूत का वो बयान दिखाते हैं जो उन्होंने एक साल पहले दिया था…
नेताओं की बातें तो आपने सुन लीं अब जरा उन लोगों की बातें भी सुन लीजिए जो हर रोज इस सड़क से गुजरते हैं, जो हर नेता का आश्वासन सुनते हैं और उसे सच मान लेते हैं, और हर सत्ताधारी पार्टी में यही आस लगाए रहते हैं कि अब शायद अच्छे दिन आएंगे…
(रिपोर्ट-दिलीप कटियार,फर्रुखाबाद)