‘मंदिर वहीं बनाएंगे, डेट नहीं बताएंगे’

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न्यूज डेस्क– इस दीपोत्सव पर भाजपा को राम लला की याद कुछ ज्यादा ही सता रही है। दिवाली तो पिछले चार साल भी आई थी, लेकिन अयोध्या जाकर घोषणा का विचार इस बार ही आया है। न जाने कहां से संत समाज से लेकर किन्नर अखाड़ा तक बाहर निकल आए हैं। 

बाबरी मस्जिद बनाम राम मंदिर का मामला तो पिछले आठ साल से सुप्रीम कोर्ट में अटका है, लेकिन धीरज की परीक्षा न लेने की चेतावनी पिछले कुछ दिनों से ही दी जा रही है। जब माहौल अचानक राममय हो जाए तो समझ लीजिए चुनाव का मौसम आ गया है। 

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मामला सिर्फ राम मंदिर तक सीमित नहीं है। जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नज़दीक आते जा रहे हैं वैसे-वैसे यह स्पष्ट होता जा रहा है कि भाजपा यह चुनाव हिंदू-मुस्लिम के सवाल पर लड़ना चाहती है। असम में बांग्लाभाषी प्रवासियों के सवाल को बाकी देश में मुस्लिम प्रवासियों की तरह पेश किया जा रहा है। सभी धर्मावलंबियों की आस्था के प्रतीक सबरीमाला में औरतों के प्रवेश को हिंदू भावनाओं पर ठेस की तरह प्रचारित किया जा रहा है। संसद में देश के नागरिकता कानून को धार्मिक आधार पर बदलने की कोशिश हो रही है। भाजपा और संघ परिवार के नेता अब हर मौके पर हिंदू भावनाओं को आहत होने का बहाना ढूंढ़ रहे हैं। 

भाजपा की इस चुनावी रणनीति को समझना हो तो पिछले कुछ दिनों में प्रकाशित हुए दो बड़े जनमत सर्वेक्षणों पर निगाह डाल लीजिए। पिछले हफ्ते सीवोटर द्वारा किए राष्ट्रीय सर्वेक्षण को एबीपी न्यूज़ चैनल द्वारा दिखाया गया। उधर ‘आज तक’ पर माई एक्सिस द्वारा हर राज्य के जनमत का एक साप्ताहिक कार्यक्रम पॉलीटिकल स्टॉक एक्सचेंज चलाया जा रहा है। इन दोनों में से किसी भी सर्वेक्षण को पूरी तरह विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता लेकिन, कम से कम इतना तो समझ में आता है कि भाजपा अचानक राम मंदिर की ओर क्यों मुड़ी है। 

भाजपा की असली दिलचस्पी और चिंता अलग-अलग राज्यों के जनमत रुझान से होगी।कर्नाटक में कांग्रेस जेडीएस की सरकार अभी से अलोकिप्रिय हो गई है। लेकिन वहां भाजपा के लिए सीट बढ़ाने की गुंजाइश अधिक नहीं है। तमिलनाडु में भाजपा के आशीर्वाद से चल रही एडीएमके सरकार घोर अलोकप्रिय हो चुकी है और उसका चुनावी सफाया होना तय है। भाजपा के लिए विस्तार की असली गुंजाइश पूर्वी भारत में है। ओडिशा, बंगाल और पूर्वोत्तर में भाजपा की लोकप्रियता भी बढ़ती दिखाई देती है। लेकिन बंगाल में अभी भाजपा अपने वोट की बढ़ोतरी को सीट में बदलती दिखाई नहीं देती। 

आज भाजपा को इस बात का संतोष हो सकता है कि कांग्रेस या विपक्ष की कोई भी पार्टी स्पष्ट विकल्प के रूप में नहीं उभर रही है। ले-देकर विपक्ष के पास महागठबंधन के गणित के सिवा न तो कोई मुद्‌दा है और न ही कोई चेहरा। ऐसे में भाजपा नेता सोचते हैं कि लोग झक मारकर दोबारा भाजपा के पास ही वापस आएंगे। लेकिन, उन्हें यह भी दिख रहा है कि सीबीआई, रिजर्व बैंक और सुप्रीम कोर्ट के नए तेवर को देखते हुए कभी भी पासा पलट सकता है। रफाल के रहस्योद्‌घाटन सरकार की छवि को बड़ा धक्का दे सकते हैं। लोकप्रियता के चढ़ाव से उतार पर पहुंची भाजपा कभी भी फिसलने लग सकती है। इसलिए भाजपा अब पुराने खेल पर उतर आई है: ‘मंदिर वहीं बनाएंगे, डेट नहीं बताएंगे, चुनाव के पास आएंगे!’

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