…और ये होता है अभिव्यक्ति की आजादी का अंतिम पायदान
न्यूज डेस्क-- आज़ादी के पहले समाचार पत्रों की शक्ल भाले की तरह होती थी |अब छाते की तरह हो गई है | कोई भी धंधेबाज़ सरकार पर रुतबा जमाने के लिए अपने काले-सफेद पैसे से अख़बार या चैनल खोल लेता हैं और हम श्रमजीवी नौकर हो जाते हैं |
यह भी नहीं…