मिलेगी सबसे प्राचीन भाषा को पहचान ,16 साल बाद अब बनेगा ‘संस्कृत बोर्ड ‘

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लखनऊ– भारत की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत को अब पहचान मिलने जा रही है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संस्कृत बोर्ड बनाए जाने का फैसला लिया है। उत्तर प्रदेश सेकेंड्री संस्कृति एजुकेशन बोर्ड (यूपीएसएसईबी) का फिर से गठन होने जा रहा है। इसके लिए 28 सदस्यों का चयन कर लिया गया है। 

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संस्कृति बोर्ड बीजेपी की सरकार में सबसे पहले 2001 में बना था लेकिन बोर्ड पूरी तरह से संचालित नहीं हो सका। इसके सदस्य सेवानिवृत्त होते गए और दूसरे सदस्यों को नियुक्ति नहीं दी गई। अब 16 साल बाद इसी पूरी टीम मिली है। डेप्युटी सीएम दिनेश शर्मा ने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार की प्राथमिकता है कि संस्कृत भाषा का प्रचार और प्रसार हो। बोर्ड छात्रों को संस्कृत पढ़ने के लिए प्रेरित करेगा। बोर्ड की जिम्मेदारी होगी कि संस्कृत की कक्षाएं संचालित और परीक्षाएं हों। इस बोर्ड के अंतर्गत संस्कृत की पढ़ाई कक्षा 6 से लेकर 12वीं तक की होगी। यह बोर्ड उत्तर प्रदेश सेकेंड्री एजुकेशन बोर्ड की तरह काम करेगा। 

पहले संस्कृत संस्थान 6वीं से लेकर परास्नातक स्तर तक की कक्षाएं चला रहे थे ये संस्थान संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी वाराणसी से संबद्ध हुआ करते थे। 2001 में जब बीजेपी की सरकार यूपी की सत्ता में आई तो संस्कृत कि लिए एक अलग बोर्ड बनाया गया। यूपीएसएससईबी 17 फरवरी 2001 को गठित किया गया। इसका उद्देश्य था कि कक्षा 6 से लेकर 12 तक की संस्कृत में पढ़ाई हो और उनकी अलग से परीक्षाएं हों। प्रदेश से बीजेपी की सरकार जाते ही यूपीएसएसईबी का क्षय होता गया। बोर्ड में सिर्फ 6-7 लोग बचे, वे भी सेवानिवृत्त होते गए। नियमानुसार हर बोर्ड का तीन साल का टर्म होता है उसके बाद उसका पुनर्गठन किया जाता है। कई बार बोर्ड के पुनर्गठन का प्रस्ताव शासन में भेजा गया लेकिन वह ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। हाल यह हुआ कि आज की तारीख में बोर्ड के पास खुद का कोई पाठ्यक्रम तक नहीं बचा। यूपी सेकेंड्री एजुकेशन विभाग के अपर मुख्य सचिव संजय अग्रवाल ने बताया कि मंगलवार को उन्होंने बोर्ड के पुनर्गठन का आदेश जारी कर दिया है। वह बोर्ड के हेड होंगे। 

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