रमजान स्पेशलःमानो तो मैं गंगा मां हूं, न मानो तो बहता पानी…
फर्रुखाबाद — कोई बजू करे मेरे जल से कोई मूरत को नहलाये ये बात बिलकुल फर्रुखाबाद के पंचाल घाट के तट पर बसा सोता बहादुरपुर गाव पर बिलकुल सठीक बैठती है जहा गंगा के प्रति मुस्लिमों की अकीदत देखनी हो तो फर्रुखाबाद के सोता बहादुर पुर गाँव आइए।
यहां रमजान में रोजेदार गंगाजल से वजू कर पांच वक्त की नमाज अदा करने के साथ ही अफ्तार और सहरी की रवायत को अंजाम दे रहे हैं। गंगा घाटों पर जहां सत्यनारायन की कथा के बोल गूंजते हैं वहीं कुरआन की आयतों से तिलावत भी सुनाई देती है। घाटों पर जब यह दृश्य दिखते हैं तो गंगा की यह आत्म कथा भी सुनाई देने लगती हैं- कोई वजू करे मेरे जल से, कोई मूरत को नहलाये। मानों तो मैं गंगा मां हूं, न मानों तो बहता पानी।
गंगा किनारे बसे शहर फर्रुखाबाद की अपनी लगभग तीन सौ साल पुरानी विरासत है। जिस नवाब मोहम्मद खां बंगश ने शहर की नींव रखी, उसी के वारिसों ने जंगे आजादी में इसकी सड़कों को अपने खून से सुर्ख कर दिया। इसकी गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल यह कि यहां आज तक कभी सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ। जिस गंगा के तट पर जहां भागवत कथा के बोल गूंजते हैं वहीं कुछ दूर पर लोग गंगा जल से वजू कर नमाज की तैयारी कर रहे होते हैं। नजारा देख बरबस ही नजीर बनारसी की गजल के शेर याद आ जाते हैं ‘सोएंगे तेरी गोद में एक दिन मरके, हम दम भी जो तोड़ेंगे तेरा दम भर के, हमने तो नमाजें भी पढ़ी हैं अक्सर, गंगा तेरे पानी से वजू कर करके।’
सांप्रदायिक कटुता कहीं रहती हो पर फर्रुखाबाद पर तो उसकी कभी छांव भी नहीं पड़ी। रमजान में हम एक ऐसी हकीकत को दिखाने जा रहे हैं जिसकी मिसाल कम ही देखने को मिलती है। फर्रुखाबाद में गंगा का प्रमुख घाट है पांचाल घाट । और इस घाट के किनारे बसा है सोता बहादुरपुर गाँव । शत-प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाला गांव। इस गांव के मुसलमानों की गंगा के प्रति श्रद्धा का कोई सानी नहीं है। गंगा के प्रति इस अकीदत की शुरुआत तो बचपन से ही हो जाती है।
रमजान के इन दिनों में घाट किनारे मुस्लिम बच्चों का जमघट इस हकीकत को बयां करने के लिए काफी लगता है। रोजेदार गंगा के पानी से वजू करते हैं और उसके बाद रमजान के फरायज अंजाम देते हैं। अफ्तार और सहरी में उनके लिए गंगाजल का खास महत्व है। यहां के मुसलमान अपनी नाव से गंगा के भक्तों को गंगा पार भी उतारते हैं और जब गंगा की लहरों में फंसकर किसी की जान पर बन आती है तो इस गांव के ही मुस्लिम गोताखोर गंगा की लहरों को चीरते हुए डूबते हुए की जान भी बचाते हैं।
इन सभी कार्यो से यहां के मुसलमानों ने गंगा मां से उनके रिश्ते और मजबूत बना दिये हैं। यहाँ एक रोजेदार ने बताया कि गंगा के मैली होने की चिंता हमें भी है। इसलिए हम भी गंगा की सफाई के प्रति जागरुक रहते हैं।यहीं के एक और रोजेदार से बात हुई तो उन्होंने भी बताया कि गंगा के प्रति हमारी अकीदत मिसाल बनी हुई है। हम रमजान में गंगा किनारे कुरआन की तिलावत भी करते हैं।गंगा के प्रति मुसलमानों का यह सम्मान सदैव अनुकरणीय रहेगा। गंगा का दर्द मुस्लिम भाइयों ने समझा है और तभी रमजान में यह संदेश यहां से सारे हिन्दुस्तान में जा रहा है।
(रिपोर्ट- दिलीप कटियार,फर्रुखाबाद)