प्रतापगढ़ः इंसाफ के लिए दर-दर की ठोकरें खा रही दोनों आंखों से दिव्यांग रामकली
प्रतापगढ़ — प्रधानमंत्री आवास के लिए महीनों से दोनों आंखों से बचपन से शूर दिव्यांग राजकली दर-दर भटक रही है।प्रतापगढ़ के इसीपुर खूंटाघाट की रहने वाली दिव्यांग महिला प्रधान से लेकर माननीयों सहित जिलाधिकारी की चौखट तक ठोकरे खा रही है।
दरअसल ग्राम्य विकास विभाग की कैसी है कार्यप्रणाली इसकी कलई खोलने को काफी है ये तस्वीरें। इस दिव्यांग की कहानी सुन आपका भी हृदय जाएगा पिघल। लेकिन माननीयों और अधिकारियो का नही पसीजता दिल। ये हाल है सूबे के स्वतंत्र प्रभार ग्राम्य विकास मंत्री डॉ महेंद्र सिंह के गृह जनपद का।
गौर से देखिए जिलाधिकारी की चौखट पर बैठी अधेड़ जो बचपन से ही दोनों आंखों से शूर है। जिसके चलते इसकी शादी भी नही हुई। लिहाजा पिता के यहा रहती रही लेकिन जब मां बाप का साया भी उठ गया तो इकलौते भाई ने भी पल्ला झाड़ लिया। जिसके बाद से गांव में ही झोपड़ी बना कर रह रही बेसहारा दिव्यांग को भी सरकारी योजनाओं का लाभ नही मिल पा रहा है।
इसका दावा है कि साहब हमारा खाने का सामान कुत्ते खा जाते है क्योंकि हमारे पास घर नही झोपड़ी है। दुसरो की मदद से डंडे के सहारे पहुचती है जिला मुख्यालय आवास की खातिर। हांथो में डंडे के अलावा एक झोला जिसमे सत्ता पक्ष के सदर विधायक संगमलाल गुप्ता के नाम आवास के लिए लिखी दरखास्त में लिखा अपना दर्द और दिव्यांग प्रमाणपत्र। लेकिन जिलाधिकारी से भी नही मिल सकी और उनकी चौखट से भी आज निराश लौटना पड़ा।
इस बाबत हमने सीडीओ धीरेंद्र प्रताप सिंह से विकास भवन में सम्पर्क किया तो उनका कहना है कि राजकली को शौचालय दे दिया गया है जिसका दो एक दिन में काम शुरू हो जाएगा। बृद्धा पेंशन दे दी गई है। सूची में नाम न होने के चलते आवास नही दिया गया नई सूची में नाम डाल दिया गया है।
इस महिला की कहानी सुनने के बाद आप खुद अंदाजा लगा सकते है कि तमाम सरकारी योजनाओं के होते हुए भी आम आदमी कितना असहाय है और कितनी कारगर है सरकारी योजनाएं। सवाल ये भी है कि योजनाओं का लाभ आखिर किसे और कैसे मिल पा रहा है। जबकि सरकार सबके साथ और सबके विकास की बात करती है। कितना बदलाव हुआ है विकलांगो को दिव्यांग नाम देने के बाद।
(रिपोर्ट-मनोज त्रिपाठी,प्रतापगढ़)