चीन से कम खतरनाक नहीं है नेताओं की जहर बुझी जुबान, संकट में भी कुर्सी ढूंढते हैं कई बेशर्म नेता?
संकट में घिरता है देश के कई नेता ऐसे हैं जो इतनी कुत्सित राजनीत करते हैं कि उन्हें देखकर बस घिन आती है घिन
कृष्ण कुमार द्विवेदी (राजू भैया)
जब भी देश संकट में घिरता है देश के कई नेता ऐसे हैं जो इतनी कुत्सित राजनीत करते हैं कि उन्हें देखकर बस घिन आती है घिन । ऐसे सियासतदान बयानों की ऐसी खेप पेश करते हैं कि उनका रवैया विश्व मंच पर भारत की किरकिरी भी कराता दिखता है? कई ऐसे भी हैं जिन्हें संकट के समय देश नहीं बस उन्हें कुर्सी का भजन भाता है। हाल में चीन पर जो चिल्ल -पो हुई उसे देखकर जनता की अंतरआत्मा यही चिल्लाई। शर्म करो सियासतदानों शर्म करो?
भारत चीन के सामने अपनी शर्तों के साथ डटा…
देश वर्तमान में चीन के सामने अड़िग खड़ा है। ड्रैगन की दादागिरी का जवाब देने का जो प्रयास भारत ने किया है वह संतोषप्रद है। देश के 20 जवान सीमा पर शहीद हुए। हमारे सैनिकों ने भी दुश्मन सैनिकों को दुगनी संख्या में मार गिराया। ऐसे कई घटनाक्रम तेजी से घटे जिस पर देशवासियों की ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की नजरें जमीं है। अब तक कई सैन्य वार्ताएं हो चुकी है। भारत चीन के सामने अपनी शर्तों के साथ डटा है। जबकि चीन भी अपनी कुचालों से बाज नहीं आ रहा है। चीन ऐसा देश है जो अपने सैनिकों के मारे जाने की खबर का भी अधिकारिक ऐलान नहीं कर पाया।
केंद्र सरकार तथा सेना एवं विपक्ष के कई नेता चीन को कड़ा जवाब मिले इसके लिए प्रयासरत हैं। जबकि कुछ ऐसे भी नेता हैं जो अपने कुत्सित बयानों, गलत राजनीतिक आचरण से इस मुहिम को कमजोर करते नजर आते हैं? उनके ज़हर बुझे बयान विश्व मंच पर भारत की एकता की खिल्ली उड़वा रहे हैं।आत्मनिर्भर भारत की ओर जब देश के कदम बढ़े तब चीन को दर्द हो गया। यही नहीं जब सीमा पर भारत ने तेजी से अपनी सड़कों के निर्माण को पूरा करना जारी रखा तो चीन को दर्द हो गया।
ऐसे कई मुद्दे हैं जिनसे चीन आज दुनिया में अघोषित रूप से अलग-थलग पड़ा है। जबकि भारत सधे कदमों से शिखर की ओर अग्रसर है। ऐसे में चीन ने नेपाल तथा पाकिस्तान के जरिए भारत को उलझाने की जो कोशिश की वह आम भारतीय को तो समझ में आती है! लेकिन देश के ऐसे कई बयानवीर नेता है जो सब कुछ समझते हुए भी कुछ समझने को तैयार नहीं दिखते?
अधिकचरे नेताओं को केवल अपना बेसुरा राग अलापना ही भाता है
देश पर जब संकट है तब पक्ष विपक्ष के नेता जब एक साथ बैठते हैं तो यह दृश्य देखकर आम हिंदुस्तानी की छाती फूल जाती है। ऐसा होना भी चाहिए। कुर्सी पर बैठने की राजनीति का मामला देश का अंदरूनी मामला है ।लेकिन जब देश पर संकट आए तब जनता की यही सोच रही है कि देश में ना पक्ष रह जाए और ना विपक्ष जाए। देश बस एकजुट होकर हिंदुस्तान दिखाई दे । लेकिन चंद ऐसे अधिकचरे नेता हैं जिन्हें केवल अपना बेसुरा राग अलापना ही भाता है?ऐसे नेताओं ने कई ऐसे सतहे बयान दिए जिसे सुनकर देश सिहर गया।
सवाल है कि क्या संकट के समय देश के बड़े नेता बिना सार्वजनिक स्थिति के आपस में बैठकर चिंतन व मंथन नहीं कर सकते। संकट के समय गोपनीय ढंग से देश की शत्रु देश के विरुद्ध क्या कार्यवाही होनी चाहिए इस पर चर्चा नहीं कर सकते? क्या यह जरूरी है कि अनाप-शनाप बयान देकर अपने बयान को ब्रेकिंग न्यूज़ बनाया जाए। और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का कुत्सित प्रयास किया जाए। पूरे घटनाक्रम के बीच यह भी नजर आया कि केंद्र की सरकार ने अपनी कार्यशैली में उतनी पारदर्शिता नहीं बरती जितनी उसे बरतनी चाहिए थी।
नेताओं के बेतुके व बेशर्म बयान…
लेकिन इधर कुछ दिनों से देश में इतनी जहरीली राजनीति की शुरुआत हुई कि उसका अंत केवल कुर्सी की परिणीति तक नजर आता है। कई बार तो यह स्थिति भी आई कि जैसे देश के कई नेता ऐसी भाषा बोल रहे हो जैसी भाषा चीन प्रयोग कर रहा है। यही नहीं पुलवामा हमले के अलावा जब सर्जिकल स्ट्राइक सेना ने की थी तब भी इतने बेतुके व बेशर्म बयान देश के नेताओं के द्वारा दिए गए थे कि उससे देशभक्त हिंदुस्तानी का हृदय कंपित हो उठा था।
मैं कृष्ण कुमार द्विवेदी राजू भैया यह कहता हूं कि सेना और सरकार पर अविश्वास करने वाले नेताओं को सीमा पर भेजना भेज देना चाहिए। लेकिन बहुत होशियार हैं ऐसे नेता। वातानुकूलित कमरों में बैठकर, टीवी चैनलों पर पहुंचकर बयानबाजी करने वाले नेता ऐसी जगह पर कतई नहीं जाएंगे जहां पर उन्हें खरोच आने का भी अंदेशा हो। कई नेता बिना तैयारी के बयान पर उतर आते हैं। कई नेता ऐसे हैं जिनकी हर बात में केवल मोदी विरोध होता है। कई नेता ऐसे हैं जो केवल सरकार की कमियों को ढूंढने की फिराक में शत्रु देशों को मुद्दे अनजाने में थमा देते हैं।
सियासत दानों को अपने चरित्र पर शर्म करनी चाहिए…
केंद्र सरकार को भी चाहिए कि वह विपक्ष को विश्वास में ले। संकट के समय विपक्ष का यह दायित्व है कि वह सरकार के साथ मिलकर देशभक्ति प्रदर्शित करते हुए ऐसा आचरण करें कि हिंदुस्तान एक एकजुट होता नजर आए। केंद्र सरकार का यह भी फर्ज है कि वह देश के मन में जो सवाल है उसका जवाब पारदर्शिता के साथ दे।
कुल मिलाकर कोरोना के समय भी कई नेताओं ने टुच्ची बयान बाजी की ?जब कई सर्जिकल स्ट्राइक हुई, पुलवामा पर हमला हुआ तब भी नेताओं के अधिकचरे बयान सामने आए? आज जब देश चीन से जूझ रहा है। ऐसे में भी कुछ नेताओं ने अपने संकीर्ण बयानों को प्रस्तुत करके भारतीय एकता की जग हंसाई पूरे विश्व में करवानी जारी कर रखी है? साफ है कि बेजा चिल्ल -पो करने वाले सियासत दानों को अपने चरित्र पर बस शर्म करनी चाहिए। जी हां शर्म करनी चाहिए ।क्योंकि जनता की अंतरआत्मा भी यही कहती है। सियासतदानों शर्म करो, शर्म।
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