एक जगह ऐसा भी जहां होती है दानव की पूजा, पंडित या पुजारी नहीं करा सकते पूजा, जानें सबकुछ
शास्त्रों और वेद पुराणों में कहा गया है की दानवों की पूजा सिर्फ दैत्य वर्ग ही करता है।
शास्त्रों और वेद पुराणों में कहा गया है की दानवों की पूजा सिर्फ दैत्य वर्ग ही करता है। लेकिन जनआस्था और विश्वास में कुछ भी नामुमकिन नहीं है। यही वजह है की छत्तीसगढ़ में दानव की पूजा की जाती है। मान्यता के अनुसार यहां जो प्रसाद चढ़ाया जाता है उसको वापस घर भी नहीं लाया जा सकता। मन्नत पूरी होने के बाद यहां मुर्गा-बकरी की बली के साथ शराब भी चढ़ाया जाता है।
दूसरे राज्यों से भी आते हैं श्रद्धालु:
यह मंदिर छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के खोपा गांव में स्थित है। गांव का नाम खोपा होने के वजह से यह मंदिर खोपा धाम के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर में दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं, यहां तक की दूसरे राज्यों के लोग भी यहां पूजा करने के लिए आते हैं।
नहीं थी महिलाओं को पूजा करने की इजाजत:
पहले इस मंदिर में महिलाओं को पूजा करने की इजाजत नहीं थी। लेकिन अब यहां पर काफी संख्यां में महिलाएं भी पूजा-आराधना करने के लिए आती हैं। इस मंदिर में भक्त नारियल व सुपाड़ी चढ़ाकर मन्नत मांगते हैं। जब मांगी हुई मुराद पूरी हो जाती है तब यहां पर बकरे की बलि चढ़ाने की प्रथा है। खास बात यह है की यहां चढ़ाए गए किसी भी प्रकार के प्रसाद को घर नही ले जाते हैं।
ये है मान्यता:
सूरजपुर जिले में स्थित खोपा धाम में दानव की पूजा करने के पीछे ये मान्यता है की खोपा गांव से गुजरे रेण नदी में बकासुर नामक राक्षस रहता था। कहा जाता है की गांव के ही एक बैगा से प्रसन्न होकर बकासुर ने यहां अपना निवास बनाया था। उसी समय से यहां दानव की पूजा की जाती है। इस वजह से यहां मंदिर में बैगा ही पूजा कराते हैं कोई पंडित अथवा पुजारी नहीं।
लोगों की राय:
खोपा धाम में दानव की पूजा करने के लिए दूर-दराज से भक्त आते हैं, फिर भी यहां अब-तक मंदिर नहीं बना है। मंदिर न बनाने को लेकर यहां के निवासियों का कहना है कि राक्षस बकासुर ने खुद को खुले आसमान के निचे ही स्थापित करने को कहा था बजाय किसी मंदिर अथवा चारदीवारी में बंद करने को।