मिट्टी को भगवान का रूप देने वाली निशा की जिन्दगी उजाले की मोहताज

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फर्रूखाबाद–नाम निशा, उम्र 10 वर्ष, काम भगवान की मूर्तियां गढऩा। लेकिन मिट्टी को भगवान का रूप देने वाली निशा की जिन्दगी उजाले की मोहताज है, शायद कृपानिधान इससे रूठे हैं।

मूलत: राजस्थान की रहने वाली निशा के परिवार में आठ सदस्य हैं। 5 वर्ष की थी, तब से जिन हाथों में किताब और पेन्सिल होनी चाहिए वो हाथ मिट्टी और प्लास्टर ऑफ पेरिस से मूर्तियां गढऩे में लग गए। उस उम्र में शायद यह भी नहीं जानती थी कि जिनकी मूर्तियां वो बना रही है उन्हें दुनिया का मालिक कहा जाता है। लोग अपनी किस्मत संवारने के लिए उनकी चौखट पर मत्था टेकते हैं। कृपानिधान, संकटमोचक की नजर अब तक निशा पर नहीं पड़ी।

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जब निशा से बात की तो बोली रोज 50 से 100 मूर्तियां बना लेती है। दीपावली के लिए छोटी से बड़ी मूर्तियां बना रही है। जब उससे शिक्षा के बारे में पूछा गया तो बोली, कभी स्कूल नहीं गयी। दो भाई और चार बहनें हैं। माँ बीमार रहती है। भाई-बहन इसी काम में लगे हैं। बोली, पता ही नहीं रहता कल कहां होंगे। कहा, आपा (पिताजी) अलग-अलग जगहों पर जाकर तम्बू लगाकर मूर्तियां बनाकर बेचते हैं। जब बच्चे स्कूल ड्रेस पहनकर निकलते हैं तो बहुत अच्छा लगता है। मन करता है मैं भी इनके साथ जाऊँ।

यह बात एक निशा की नहीं है। होटलों में, सड़कों पर बाल श्रम करते हुए सैकड़ों बच्चे मिलेंगे जो स्कूल छोड़कर कच्ची उम्र में ही काम करते मिलेंगे। दीपावली आ रही है, उसके बाद बाल दिवस 14 नवम्बर आएगा। बड़े-बड़े भाषण होंगे, बड़ी-बड़ी बातें होंगी, लेकिन भाषण देने वालों के घरों में ही किशोर नौकरी करते मिल जाएंगे।

(रिपोर्ट-दिलीप कटियार, फर्रूखाबाद)

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