मोदी और अमित शाह की रणनीति पर भारी पड़ा महागठबंधन !
न्यूज डेस्क — उत्तर प्रदेश लोकसभा उपचुनाव में बसपा समर्थित सपा उम्मीदवार की ऐतिहासिक जीत ने मोदी और अमित शाह की रणनीति को हिला कर रख दिया और देश की राजनीति पर भी खासा असर डाला है.वहीं लखनऊ के सत्ता के गलियारे में इस जीत के कई मायने निकाले जा रहे हैं.
इनमें एक अहम चर्चा ये है कि मोदी के नेतृत्व और अमित शाह रणनीति का तोड़ सिर्फ और सिर्फ महागठबंधन ही है. दरअसल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस ने मिलकर पहली बार बीजेपी के विजय रथ को बिहार में थामा. इसके बाद गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में धुर विरोधी सपा और बसपा एक दूसरे के करीब आए और बीजेपी को उनके ही गढ़ में पसीने छुड़ा दिए.
मोदी लहर में जहां 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में जबरदस्त प्रदर्शन करने वाली बीजेपी को गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा है.वहीं सपा बसपा के इस नए गठजोड़ ने उत्तर प्रदेश की सियासत में नए बदलाव का रास्ता दिखा दिया है. चुनावी आंकड़ों की बात कि जाए तो दोनों दलों का प्रदर्शन हमेशा से साथ जोड़कर देखने पर बीजेपी पर हमेशा भारी पड़ता रहा है. उपचुनाव में दोनों दलों ने इस कागजी गणित को जमीन पर पहुंचाकर 2019 लोकसभा में बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है.इस चुनौती का एहसास खुद डिप्टी सीएम केशव मौर्य भी करते हैं.हम चुनाव परिणामों की समीक्षा करेंगे और भविष्य में सपा, बसपा और कांग्रेस के साथ आने की स्थिति में उनसे निपटने की रणनीति बनाएंगे.
गौरतलब है कि गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में बीजेपी की सियासी गणित बिगड़ने के पीछे कम मत-प्रतिशत का होना भी माना जा रहा है. परंपरागत वोटरों के मामले में सपा और बसपा इतनी कमजोर नहीं हुई हैं, जितनी विधानसभा या लोकसभा में सीटों की संख्या दर्शाती है. 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में सभी दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. नतीजा रहा कि बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ जीती.अब 2018 के उपचुनाव में बसपा का समर्थन मिलते ही सपा दोनों सीटों पर जीत गई. इस लिहाज से देखा जाए तो 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन को मिली जीत ही बिपक्ष ने मोदी और अमित शाह की रणनीति का तोड़ निकाल लिया है।