लखनऊ की हवा दिल्ली से ज्यादा खतरनाक
लखनऊ — इन दिनों यूपी की राजधानी लखनऊ की अबों हवा दिल्ली से ज्यादा खतरनाक हो गई है. कृत्रिम फेफड़ों को लालबाग क्षेत्र में लगाए जाने के 5 वें दिन ही इनकी हालत खराब हो गई.
हवा में मौजूद पीएम 2.5 और पीएम 10 तत्व इन फेफड़ों की सतह पर जम चुके हैं. जिससे इनका रंग काला हो गया है. जो बता रहा है कि यहां की प्रदूषित हवा किस तरह हमारे फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रही है.
दरअसल लालबाग क्षेत्र में नगर निगम के सामने सौ प्रतिशत यूपी अभियान द्वारा हेपा फिल्टर युक्त एक जोड़ी कृत्रिम फेफड़े लगाए गए थे. इससे पहले नई दिल्ली में प्रदूषण के खतरे को देखने के लिए ऐसे ही कृत्रिम फेफड़े लगाए गए थे. लखनऊ में लगे कृत्रिम फेफड़े तीसरे दिन ही मटमैले हो गए थे और पांचवे दिन इनका रंग पूरी तरह काला हो गया. जबकि दिल्ली में लगाए गए कृत्रिम फेफड़े की स्थिति इतनी खराब नहीं हुई थी.
वहीं सौ प्रतिशत यूपी अभियान की मुख्य कैंपेनर एकता शेखर ने बताया कि पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के आकड़ों के आधार पर पिछले 120 दिनों में लखनऊ में एक भी दिन हवा राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप स्वच्छ नहीं मिली. इसलिए यहां हवा को स्वच्छ रखने के लिए ग्रेडेड एक्शन प्लान की जरूरत है.
हर व्यक्ति पी रहा 15 सिगरेट
प्रदूषण मुक्त लखनऊ के संयोजक व केजीएमयू के रेस्पीरेटरी विभाग के एचओडी प्रो. सूर्यकांत ने कहा कि जिस प्रकार से ये फेफड़े काले हुए हैं उसी प्रकार ज्यादातर लोगों के जीवन में अंधेरा हो रहा है. लोगों को कैंसर जैसी समस्याएं हो रही हैं. लखनऊ में वायु प्रदूषण का स्तर 320 है. इसका मतलब हर व्यक्ति यहां पर 15 सिगरेट रोज पी रहा है. अस्पतालों में मरीजों की लंबी कतारें तभी कम होंगी जब प्रदूषण कम होगा.
डॉ. सूर्यकांत ने बताया कि प्रदूषण से फेफड़े, ब्रेन कैंसर, गले, तालू, लैरिंक्स, पेट, प्रोस्टेट, किडनी का कैंसर, वायु प्रदूषण के कारण बढ़ रहे हैं. शोधों से पता चला है कि पीएम वन साइज के अति सूक्ष्म कण फेफड़ों से होते हुए ब्लड में घुलकर कैंसर का कारण बन रहे हैं.
हर वर्ष 70 लाख बच्चों की होती है मौत
निमोनिया से हर वर्ष देश में करीब दो लाख बच्चों की मौतें हो रही हैं. इनमें 70 फीसद को प्रदूषण के कारण निमोनिया हो रहा है. इसका मतलब है कि करीब डेढ़ लाख बच्चे हर वर्ष प्रदूषण के कारण ही मर रहे हैं. वहीं प्रदूषण से हर वर्ष विश्व में 70 लाख बच्चों की मौत होती है जबकि केवल भारत में ही 12 लाख बच्चों हर साल दम तोड़ देते है.अगर उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो प्रदूषण से हर वर्ष करीब 2.60 लाख बच्चों की जान जाती है.