गोंडा– जिले में सदर तहसील क्षेत्र के एक गांव के गरीबी और अल्प संसाधन में भी lockdown में चुन्नीलाल रैदास के परिवार में एक ही छत के नीचे पुत्र, पौत्रियों से भरे पुरे चार पीढ़ियों के 50 लोग एक साथ खुशी-खुशी रहते हैं।
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स्वाभिमान और समझदारी के लिए प्रसिद्ध इस परिवार का जीवन दर्शन बेमिसाल है। लॉकडाउन में काम धंघा बंद होने से उपजे भारी आर्थिक संकटों की बीच भी इस परिवार की खुशियां कम नहीं हुईं है।
जीवनशैली में आया परिवर्तन
हालांकि ये परिवार लाकडाउन से पहले भी यूं ही रहता था, मगर सभी लोग एक साथ एकत्रित नहीं हो पाते थे, बच्चे स्कूल चले जाते थे। परिवार के मुखिया सबसे बुजुर्ग 90 वर्षीय चुन्नीलाल रैदास भी शहर के स्टेशन रोड पर स्थित दुर्गामाता मंदिर पर बधाई बजाने निकल जाते थे। तो चुन्नीलाल के लड़के रामनाथ, नंदलाल, मेहीलाल और नंद कुमार अपने पल्लेदारी के काम पर। lockdown में इस परिवार की जीवनशैली में परिवर्तन आया है। इनका कब बातों और काम में दिन गुजर जाता है पता ही नहीं चलता क्योंकि जो सदस्य अपने काम पर निकल जाते थे वह भी घर पर ही रहते हैं।
लाक डाउन में पूरी सर्तकता…
संयुक्त परिवार की परंपरा को रैदास परिवार ने सार्थक किया है। घर में बंटवारा आज तक नहीं हुआ है। 90 वर्षीय चुन्नीलाल के छह बेटों में स्वामीनाथ और नानमून की मौत हो के बाद उनका परिवार भी चुन्नीलाल के ही साथ संयुक्त परिवार में रहता है। घर के सभी सदस्य फिजिकल डिस्टेंसिंग के साथ कोरोना से बचाव का पूरी तरह पालन कर रहे हैं। यह परिवार उन लोगों के लिए सबक है जो lockdown का उल्लंघन कर बाजार में घूमकर स्वयं व परिवार की जान खतरे में डाल रहे हैं। lockdown डिस्टेंसिंग, साबुन से हाथ धोने तथा मास्क लगाकर रखने के सभी जागरूक रहते हैं।
ऐसे बीतता है दिन-
बुजुर्ग चुन्नीलाल और उनकी पत्नी बच्ची देवी बताती है कि सुबह-शाम भजन कीर्तन के साथ अपनी आने वाली पीढ़ियों को उनके समय के घटनाक्रम के साथ पुराने किस्से सुनाते है। छहों बहुएं सुनीता, शिवकला, रजकला, रमकला, ननका और मीना देवी खेती का काम संभालती हैं। जरुरत पड़ने पर चारों पुत्र भी उनका सहयोग करते हैं। इस समय घर और बाहर का काम बंद होने से घर के पुरुष घरेलू काम में भी सहयोग कर रहे हैं। बच्चे गांव में ही खेल रहे हैं। तो बड़े बुजुर्ग एक जगह बैठकर पुराने समय की यादों को साझा कर रहे हैं।
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रोज खत्म होता है 15 किलो राशन
चुन्नीलाल के परिवार में रोज 15 किलो से अधिक राशन का खर्च है। सुबह और शाम को 10 दिन पौत्र बधू गुड़िया और 10 दिन माधुरी की अगुआई में सांझे चूल्हे पर खाना पकता है। तो परिवार की पौत्री ममता, वंदना व अन्य लडकियां उनका सहयोग करती हैं। नाश्ता अथवा भोजन तैयार होते ही घर के दो दर्जन बच्चे कतार बनाकर बैठ जाते हैं। भले ही नंबर देरी से आए मगर न नाराजगी है न गुस्सा क्योंकि आपस में प्यार इतना है।
घर की अन्य लड़कियों सुबह के भोजन व्यवस्था में लगीं रहती हैं। कोई पशुओं को चारा डालता तो कोई घरों में साफ सफाई का जिम्मा संभालता है। लड़कियां अपनी दादी और परदादी बच्ची देई से घरेलू काम का तरीका सीखतीं हैं तो लड़के अपने दादा-परदादा से पुराने किस्से सुनकर ही मनोरंजन करते है। ये दिनचर्या है सदर तहसील क्षेत्र में तुर्काडीहा गांव के चुन्नी लाल रैदास के परिवार की। जहां एक ही छत के नीचे चार पीढ़ियों के 48 लोग एक साथ रहते हैं।
सुबह झगड़ा और शाम तक हो जाती सुलह-
जिले और क्षेत्र के लिए मिसाल बने चुन्नीलाल बताते हैं कि घर में पुरुषों में नहीं महिलाओं में अक्सर किसी न किसी बात को लेकर वाद-विवाद भी खूब होता है, लेकिन शाम को सब भोजन एक साथ ही करती हैं। कभी-कभी नाराजगी में अलग होने की बात पर घर में रोना पीटना मच जाता है। उनके चार बेटों राम नाथ, नंदलाल, मेहीलाल और नंद कुमार ने कहा कि जब तक हम जिंदा रहेंगे कभी अलग होने की बात सोच भी नहीं सकते।
हर साल शादी, अखण्ड रामायण पाठ-
चुन्नीलाल की बड़ी बहू सुनीता बताती हैं कि परिवार बड़ा होने के कारण पिछले कई वर्षों से हर साल विवाह का आयोजन होता है। इसके अलावा अखण्ड रामचरित मानस का पाठ और भंडारा का भी कार्यक्रम होता है। इस साल भी दो बच्चों का विवाह होना था लेकिन लाक डाउन के कारण नहीं हो सका और टाल दिया गया।
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