कारगिल विजय दिवसः भारत के जांबाज ‘शेरशाह’ से थर थर कांपता था पाकिस्‍तान

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पूरा देश आज 22वां कारगिल विजय दिवस मना रहा है। देश‌ के राष्ट्रपति और सशस्त्र सेनाओं के सुप्रीम कमांडर, रामनाथ कोविंद द्रास में करगिल वॉर मेमोरियल पर वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि दी. जीत के उपलक्ष्य में हर वर्ष कारगिल के द्रास स्थित वॉर मेमोरियल पर कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है.

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कारगिल युद्ध वीर सपूतों ने दिया था वीरता का परिचय

1999 में पाकिस्तानी सेना ने भारत की इन चोटियों पर कब्जा कर लिया था. कारगिल युद्ध कई वीर सपूतों ने अपनी वीरता का परिचय देते हुए वीरगति को प्राप्त हुए. पाकिस्‍तानी दुश्‍मनों से भि‍ड़ते जवानों की गोली और बम के धमाकों के बीच उस समय जो नाम देश में सबसे ज्‍यादा गूंज रहा था वो नाम था कैप्‍टन विक्रम बत्रा का. जिसे पाकिस्तानी आर्मी शेरशाह कहा करती थी.

कारगिल युद्ध के जांबाज कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म 7 दितंबर को हुआ था. विक्रम बत्रा भारतीय सेना के वो ऑफिसर थे, जिन्होंने कारगिल युद्ध में अभूतपूर्व वीरता का परिचय देते हुए वीरगति प्राप्त की. जिसके बाद उन्हें भारत के वीरता सम्मान परमवीर चक्र से भी सम्मानित किया गया. आइए जानते उनकी वीरता के वो किस्से, जिन्हें आज भी देश याद रखता है.

जांबाज कैप्टन विक्रम बत्रा की वीरता

दरअसल 20 जून 1999 की आधी रात जब भारत की आधी से ज्‍यादा आबादी गहरी नींद में सो रही थी। समुद्री सतह से हजारों फीट ऊपर बर्फ से ढंके पहाड़ गोला-बारुद और मोटार्र की आवाजों से गूंज रहे थे। चारों तरफ बर्फ थी और गोला बारुद का धुंआ ही धुंआ। भारत माता की जय और भारतीय सेना जिंदाबाद के नारों से ये घाटि‍यां कांप सी गई थी।

तभी कैप्टन विक्रम बत्रा की लीडरशिप में इंडियन आर्मी ने घुसपैठियों से प्वांइट 5140 छीन लिया था. ये बड़ा इंपॉर्टेंट और स्ट्रेटेजिक प्वांइट था, क्योंकि ये एक ऊंची, सीधी चढ़ाई पर पड़ता था. वहां छिपे पाकिस्तानी घुसपैठिए भारतीय सैनिकों पर ऊंचाई से गोलियां बरसा रहे थे.

इसे जीतते ही विकम बत्रा अगले प्वांइट 4875 को जीतने के लिए चल दिए, जो सी लेवल से 17 हजार फीट की ऊंचाई पर था और 80 डिग्री की चढ़ाई पर पड़ता था.

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जीत के बाद ‘ये दिल मांगे मोर’ जोर से चिल्लात थे विक्रम

7 जुलाई 1999 को उनकी मौत एक जख्मी ऑफिसर को बचाते हुए हुई थी. इस ऑफिसर को बचाते हुए कैप्टन ने कहा था, ‘तुम हट जाओ. तुम्हारे बीवी-बच्चे हैं.’अक्सर अपने मिशन में सक्सेसफुल होने के बाद कैप्टन विक्रम बत्रा जोर से चिल्लाया करते थे, ‘ये दिल मांगे मोर.’

उनके साथी नवीन, जो बंकर में उनके साथ थे, बताते हैं कि अचानक एक बम उनके पैर के पास आकर फटा. नवीन बुरी तरह घायल हो गए. पर विक्रम बत्रा ने तुरंत उन्हे वहां से हटाया, जिससे नवीन की जान बच गई. पर उसके आधे घंटे बाद कैप्टन ने अपनी जान दूसरे ऑफिसर को बचाते हुए खो दी.

7 जुलाई, 1999 को हुए थे शहीद

कैप्टन विक्रम बत्रा की बहादुरी के किस्से भारत में ही नहीं सुनाए जाते, पाकिस्तान में भी विक्रम बहुत पॉपुलर हैं. पाकिस्तानी आर्मी भी उन्हें शेरशाह कहा करती थी. विक्रम बत्रा की 13 JAK रायफल्स में 6 दिसम्बर 1997 को लेफ्टिनेंट के पोस्ट पर जॉइनिंग हुई थी. दो साल के अंदर ही वो कैप्टन बन गए. उसी वक्त कारगिल वॉर शुरू हो गया. 7 जुलाई, 1999 को 4875 प्वांइट पर उन्होंने अपनी जान गंवा दी, पर जब तक जिंदा रहे, तब तक अपने साथी सैनिकों की जान बचाते रहे.

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