पिता ने सड़क किनारे भूजा बेचकर बेटे को बनाया सूबेदार !
बहराइच– “खुद पुकारेगी मंज़िल तो ठहर जाऊँगा,
वरना खुद्दार मुसाफिर हूँ यूँ ही गुज़र जाऊँगा”।
ये पंक्तियां मेहनतकश जगलाल गुप्ता पर सटीक बैठती है। बहराइच के कलेक्ट्रेट की दर-ओ-दीवारें जितनी पुरानी हैं, उतना ही पुराना है सुखनदिया के रहने वाले जगलाल के मेहनतकशी का सफरनामा।
40 साल पहले उन्होंने डीएम तिराहे पर भड़भूजे का काम शुरू किया था, आज उनका बड़ा बेटा भारतीय सेना में नायब सूबेदार है। नौकरी हासिल करने के बाद बेटे ने कई बार उन्हें अपने साथ रहने और भड़भूजे का काम छोड़ देने की जिद की, लेकिन जगलाल ने उसकी एक न सुनी और अपनी मेहनतकशी को ज़िंदगी का जरिया बना लिया है। जगलाल कहते है कि-” भड़भूजा उसके आराध्य हैं, आज बेटे के कंधों पर लगे सितारे भी इसी देवता के आशीर्वाद से है तो इसे कैसे छोड़ सकता हूँ।”
बहराइच मुख्यालय से महज आठ किमी दूर सुखनदिया गांव है। यहीं जगलाल गुप्ता रहते हैं। जगलाल का महज 16 साल की आयु में पुष्पा देवी से विवाह हो गया। कुछ दिन तो हंसी-खुशी से जीवन बीता। लेकिन समय बढ़ने के साथ जगलाल के कंधों पर घर के खर्च का बोझ भी बढ़ने लगा। इस बीच उन्हें एक बेटा भी हो गया। साक्षर जगलाल ने मजदूरी कर परिवार के भरण पोषण की जिम्मेदारी उठाना शुरू किया, लेकिन मजदूरी में इतने कम पैसे मिलते थे कि अधिकतर वक़्त उनकी जेब खाली रहती थी। एक दिन उन्होंने कलेक्ट्रेट के पास बौद्ध परिपथ के किनारे भड़भूजे की दुकान खोलने का इंतजाम कर लिया।
बात करीब 40 साल पहले की है। कलेक्ट्रेट, माल व दीवानी कोर्ट आने वाले फरियादी और वकील मक्के के लावा को बेहद पसंद करते थे। इसलिए जगलाल की आमदनी अच्छी हो जाती थी और परिवार का भरण पोषण भी बेहतर तरीके से होने लगा। कुछ पैसे बच भी जाते थे। इस बीच जगलाल के परिवार का दायरा बढ़ गया। चार बेटे व तीन बेटियों से भरे पूरे परिवार की जरूरतें भी पूरी होने लगी। खुद न पढ़ न पाने की कचोट जगलाल को परेशान करती थी, इसलिए उन्होंने बच्चों को खूब पढ़ाया और उन्हें सदैव आगे बढ़ने के प्रेरित किया। जिसका नतीजा यह हुआ कि कारगिल युद्ध से एक साल पहले उनका बड़ा बेटा कैलाश नाथ भारतीय सेना में भर्ती हो गया। मां पुष्पा देवी व छोटे भाई संदीप व बहन संगीता, शीला व रोली को लगा कि अब गुरबत के दिन दूर हो जाएंगे। पिता जगलाल भड़भूजे का काम भी छोड़ देंगे। कैलाश को नौकरी मिलने से परिवार की तंगहाली के दिन खुशहाली में जरूर तब्दील हो गए, लेकिन जगलाल ने भड़भूजे का काम नहीं छोड़ा। वर्तमान में कैलाश नायब सूबेदार है। उसकी झांसी में तैनाती है। कुलीन घर से उसकी शादी हो चुकी है। दोनों से एक वर्षीय बेटा भी है। कैलाश जब भी छुट्टियों पर घर आता है तो चौथे पन में पहुंच चुके पिता को भड़भूजे का काम छोड़ने की जिद करता है, लेकिन जगलाल आज भी अपनी जिद पर कायम हैं।
जगलाल को अपने बेटे कैलाश पर नाज है। वो कहते हैं कि उनके बेटे ने कारगिल युद्ध में योगदान दिया। अब तक वह सेना के कई ऑपरेशन में शामिल होकर अपने जज्बे को साबित कर चुका है। छोटे बेटे मनोज व रवि को भी सेना में भेजूंगा।जगलाल कहते हैं कि गुप्ता होने के कारण (भार) भड़भूजा हमारे आराध्य देव हैं। इनकी आराधना से ही तीन बेटियों व दो बेटों की शादी की है। इन्ही के आशीर्वाद से ही आज बेटा भारतीय सेना में नायब सूबेदार है। बेटा मनोज व रवि को पढ़ा लिखाकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करूंगा। मनोज सातवीं कक्षा व रवि चौथी कक्षा में है। उन्होंने बताया कि प्रतिदिन भड़भूजे के काम से चार-पांच सौ रुपये की आमदनी हो जाती है। जिससे जीवन अच्छे से बीत रहा है। 40 साल के इतिहास में कई बार पटरी दुकानदारों को उजड़ा गया, लेकिन मेरी दुकान को आज तक नहीं उजाड़ा गया। ठंड के दिनों में यह धंधा खूब चलता है, अन्य समय बंद हो जाता है। इस बीच मजदूरी कर घर का खर्च चलाता हूँ। बेटा भी अपने भाइयों की पढ़ाई व खर्चे का इंतजाम करता है। लेकिन मैं नहीं लेता। क्योंकि बेटा सफल हुआ यह उसकी किश्मत है। मैं मेहनत करना नहीं छोड़ सकता। जिस दिन मैं कर्म करना बंद कर दूंगा, उसी दिन आंख बंद हो जाएगी।
रिपोर्ट – अनुराग पाठक ,बहराइच