Jagannath Rath Yatra 2024 : रथ पर सवार होकर निकले भगवान जगन्नाथ, जानें यात्री से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

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Jagannath Rath Yatra 2024: भगवान जगन्नाथ (Lord Jagannath) की भव्य रथ यात्रा आज शुरू हो गई है। यह रथ यात्रा हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को ओडिशा के पुरी में आयोजित की जाती है। भगवान जगन्नाथ पालकी में सवार होकर बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र के साथ नगर भ्रमण पर निकल चुके हैं। भगवान जगन्नाथ सबसे पहले अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर (gundicha temple) के दर्शन के लिए पहुंचेंगे।

10 दिनों तक चलने वाली इस यात्रा में लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं। कहा जाता है कि रथ यात्रा के दर्शन मात्र से 1000 यज्ञों का पुण्य प्राप्त होता है। इसके अलावा रथ यात्रा के दौरान नवग्रहों की पूजा भी की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि जगन्नाथ रथ यात्रा में भाग लेने मात्र से अशुभ ग्रहों का प्रभाव कम हो जाता है और शुभ ग्रहों का प्रभाव बढ़ जाता है।

Jagannath Rath Yatra 2024: क्या है रथ यात्रा की परंपरा

दरअसल, प्राचीन काल में भगवान जगन्नाथ ने अपने भक्त को बीमारी के दर्द से बचाने के लिए उसके कर्म को भोगा था। इसके लिए उन्हें 15 दिनों तक बीमार रहना पड़ा था और एकांतवास में रहना पड़ा था। इस दौरान उनका इलाज किया गया था। इसी परंपरा के साथ हर साल आषाढ़ महीने में भगवान जगन्नाथ के मंदिर के कपाट 15 दिनों के लिए बंद कर दिए जाते हैं। इस दौरान भगवान की मूर्ति भी मंदिर में नहीं रहती और उनका इलाज किया जाता है। जब भगवान स्वस्थ हो जाते हैं तो वे नगर भ्रमण के लिए निकल जाते हैं।

 
परंपरा के अनुसार, जब भगवान जगन्नाथ स्वस्थ होते हैं तो भगवान मंदिर से बाहर आते हैं और भगवान बलभद्र, बहन सुभद्रा के साथ उनकी पूजा की जाती है। फिर भगवान रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण (Jagannath Rath Yatra 2024) करते हैं। इसके बाद वे कुछ दिनों के लिए आराम करने के लिए गुंडिचा मंदिर में अपनी मौसी के घर चले जाते हैं। 5 हजार साल पुरानी बताई जाने वाली भगवान जगन्नाथ की इस रथ यात्रा को देखने के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु जगन्नाथ पुरी आते हैं।

कैसे शुरू हुई जगन्नाथ रथ यात्रा

भगवान जगन्नाथ की यात्रा सदियों से चली आ रही है। कहा जाता है कि इसकी शुरुआत 12वीं शताब्दी में हुई थी। एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार बहन सुभद्रा ने अपने भाइयों कृष्ण और बलराम से कहा कि वह नगर देखना चाहती हैं। इसके बाद अपनी बहन की इच्छा पूरी करने के लिए दोनों भाइयों ने बड़े प्रेम से एक रथ तैयार किया। तीनों भाई-बहन इस रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकले और भ्रमण पूरा करने के बाद वापस पुरी लौट आए। तब से यह परंपरा चली आ रही है।

Jagannath Rath Yatra 2024: कैसे तैयार होते हैं रथ

भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के लिए हर साल तीन रथ बनाए जाते हैं। रथों को चमकीले रंगों से रंगा जाता है। भगवान जगन्नाथ के रथ के लिए लाल और पीला रंग, भगवान बलराम के रथ के लिए लाल और हरा रंग और सुभद्रा के रथ के लिए लाल और काला रंग इस्तेमाल किया जाता है। भगवान जगन्नाथ के रथ सबसे पीछे होता है जिसे चक्रध्वज या नंदीघोष कहते हैं, जिसका अर्थ है शोर और हर्षोल्लास वाली ध्वनि। बलराम का रथ सबसे आगे होता है, जिसे तालध्वज कहते हैं। जबकि बहन सुभद्रा का रथ बीच में होता है। इसे दर्पदलन कहते हैं।

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इसमें 16 पहिए होते हैं और यह रथ करीब 45 फीट लंबा, 65 टन वजनी होता है। इसके शिखर पर गरुड़ की आकृति भी होती है और इसे चार सफेद लकड़ी के घोड़े खींचते हैं। इन रथों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लकड़ी को सोने की कुल्हाड़ी से काटा जाता है। रथों को तैयार करने में करीब दो महीने का समय लगता है। यह काम अक्षय तृतीया के दिन से शुरू होता है।

Jagannath Rath Yatra का पूरा शेड्यूल

जगन्नाथ रथ यात्रा 7 जुलाई को सुबह 09 बजकर 27 मिनट पर निकाली गई। इसके बाद यात्रा दोपहर 12 बजकर 15 मिनट से फिर से शुरू होगी। फिर 1 बजकर 37 मिनट पर विश्राम लेगी। इसके बाद शाम 4 बजकर 39 मिनट से यात्रा शुरू होगी और 6 बजकर 1 मिनट तक चलेगी।

सोमवार, 8 जुलाई 2024- 8 जुलाई की सुबह रथ को फिर से आगे बढ़ाया जाएगा। पुरी मंदिर के एक अधिकारी ने बताया कि सोमवार को रथ गुंडिचा मंदिर पहुंचेंगे। अगर किसी कारणवश देरी होती है तो मंगलवार को रथ मंदिर पहुंचेंगे।

8-15 जुलाई 2024- भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा के रथ गुंडिचा मंदिर में रहेंगे। यहां उनके लिए कई तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी इसका पूरी तरह से पालन किया जाता है।

16 जुलाई 2024- इस दिन रथ यात्रा का समापन होगा और तीनों देवता जगन्नाथ मंदिर लौट आएंगे।

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