ये कैसा सम्मान? देश का बहादुर बेटा जी रहा मुफलिसी की जिंदगी
बस्ती –महज 12 साल की उम्र में घाघरा नदी में नाव पलटने पर 14 लोगों की जान बचाने वाला. जिसकी बहादुरी के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उसे राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया था.आज उसी देश के बहादुर बेटे की बेबसी देखकर वाकई शर्मिंदगी महसूस होती है.
दरअसल हम बात कर रहे है उत्तर प्रदेश के उस बहादुर बेटे भीमसेन की जिसने अपनी बहादुरी के दम पर बस्ती जिले का भी नाम रोशन किया था लेकिन आज मुफलिसी की जिंदगी जी रहा है. कलवारी थाना क्षेत्र के डकही गांव के भीमसेन उर्फ सोनू ने अपनी बहादुरी के दम पर जनपद और अपने गांव का नाम रोशन किया. भीमसेन को उस की बहादुरी के लिए 26 जनवरी 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया.
बता दें कि अपनी जान पर खेल कर भीमसेन ने नवम्बर 2014 में घाघरा नदी में नांव पलटने पर 14 लोगों की जान बचाई थी. भीमसेन की उस वक्त उम्र महज 12 साल थी. जिसके लिए उसे राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. लेकिन आज भीमसेन की उपेक्षा हो रही है. भीमसेन का परिवार आज भी गरीबी की वजह से छप्पर के मकान में रहने को मजबूर है. पात्र होने के बावजूद भी उसे सरकारी आवास तक नहीं दिया गया.जिनके लिए बहादुर भीमसेन पिछले दो सालों से अधिकारियों का चक्कर लगा रहा है. लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है.
अधिकारियों के चक्कर लगाते-लगाते बहादुर भीमसेन का दिल टूट चुका है. भीमसेन गरीबी की वजह से पढाई तक नहीं कर पा रहा है. परिवार वाले मेहनत मजदूरी कर किसी तरह भीमसेन की पढ़ाई करवा रहे हैं.भीमसेन के छप्पर के मकान में चंद मिट्टी के बरतन हैं, जिनमें खाने के लिए कुछ अनाज रखा जाता है. खाना बनाने के लिए घर में दो चार बर्तन हैं. गैस चूल्हा न होने की वजह से लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाने को परिवार मजबूर हैं.
वहीं भीम के परिजनों का कहना है जब बेटे को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया तो बहुत से अधिकारी गांव में आए और घर, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए आश्वासन भी दिया. लेकिन आज तक बहादुर भीमसेन को कोई सरकारी लाभ नहीं मिला. भीमसेन का कहना है की राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार का उसे कोई लाभ नहीं मिल रहा है. यह उसके लिए किसी कूड़े से कम नहीं.
बता दें कि भीमसेन के गांव में आज भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. ज्यादातर लोगों के घर छप्पर के बने हुए हैं. आजादी के बाद से आज तक गांव में बिजली नहीं पहुंची. वहीं गांव वालों का आरोप है की कोटेदार एक महीने का राशन देता है और एक महीने का राशन ब्लैक कर देता है. गांव में लोगों के पास शौचालय तक नहीं है. लोग खुले में शौच जाने को मबूर हैं. वहीं गांव में गरीबी की वजह से ज्यादातर लोग मजदूरी करके अपना जीवन यापन करते हैं.
भीमसेन ने सरकार से मांग करते हुए कहा कि “हम लोग जहां रहते हैं, वहां से एनएच रोड निकल रहा है. जिससे रहने की समस्या हो रही है. सरकार से हमारी मांग है कि हम लोगों को कहीं और बसाया जाए. वहीं परियोजना निदेशक आरपी सिंह का कहना है कि भीमसेन को लोहिया आवास देने के लिए पूर्व जिलाधिकारी द्वारा अनुमोदन किया गया था. विकास खण्ड से रिपोर्ट मंगाकर दो तीन दिन में भीमसेन को आवासीय सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी. अब देखने वाली बात होगी की दो साल से अधिकारियों का चक्कर लगा रहे भीमसेन को घर मिलेगा या नहीं.