करोड़ों के दवा घोटाले में 11 साल बाद हुई FIR
लखनऊ–वर्ष 2004-05 और 2005-06 में हुए करोड़ों रुपये के दवा घोटाले में आर्थिक अपराध शाखा ने चंदौली के दो तत्कालीन सीएमओ, चीफ फार्मसिस्ट, यूपीडीपीएल के दो अफसरों समेत सात लोगों के खिलाफ चंदौली में एफआईआर दर्ज करवाई है। इस मामले में कई और जिलों की भी जांच चल रही है। जल्द उनके खिलाफ भी ईओडब्ल्यू एफआईआर दर्ज कराएगी।
डीजी आर्थिक अपराध शाखा आलोक प्रसाद ने बताया कि ईओडब्ल्यू के इंस्पेक्टर नंद किशोर पाण्डेय ने चंदौली कोतवाली में तत्कालीन सीएमओ उपेंद्र कंचन, उदय प्रताप सिंह, चीफ फार्मासिस्ट मुख्तार अहमद, उत्तर प्रदेश ड्रग ऐंड फार्मास्यूटिकल (यूपीडीपीएल) के तत्कालीन उप प्रबंधक विपणन डीएल बहुगुणा, अधिशाषी वाणिज्य अधिकारी वीएस रावत, वाराणसी में दवा सप्लाई करने वाली प्रिया फार्मा और आगरा के दाऊ मेडिकल सेंटर के संचालक सुरेश चौरसिया के खिलाफ एफआईआर करवाई है। इन पर भ्रष्टाचार, गबन, धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक साजिश के आरोप हैं। ईओडब्ल्यू ही मामले की विवेचना करेगी। डीजी ने बताया कि कई अन्य जिलों में भी दवा घोटाले की जांच हो रही है।
28 फरवरी 2006 में कानपुर के पनकी की निर्मल इंड्रस्ट्रीज ऐंड कंपनी के मालिक प्रवीण सिंह ने ईओडब्ल्यू में शिकायत की थी। इसमें कहा गया था कि यूपीडीपीएल सरकार द्वारा पोषित दवा निर्माण इकाई थी। यह हर साल केंद्रीय औषधि भंडार को 25 करोड़ रुपये से ज्यादा की दवाएं बेचती थी। ये दवाएं स्वास्थ्य निदेशालय के जरिए जिलों में भेजी जाती थी। वर्ष 2004-05 और 2005-06 में यूपीडीपीएल के उप प्रबंधक विपणन डीएल बहुगुणा ने चंदौली के सीएमओ और अन्य चिकित्साधिकारियों से मिलीभगत कर शासनादेश के खिलाफ दवाओं के वितरण के लिए प्राइवेट डिस्ट्रीब्यूटर्स बना दिए। आरोप है कि तत्कालीन अपर निदेशक स्वास्थ्य, सीएमओ और अन्य अधिकारियों ने यूपीडीपीएल के अधिकारियों और निजी फर्मों से सांठगांठ कर दवाओं का दो-दो बार भुगतान करवाया। प्राइवेट डिस्ट्रीब्यूटर्स ने फर्जी डायवर्जन बिलों के जरिए दवाओं को सीएमओ से लेकर फिर उन्हें बेच दिया। इन दवाओं का भुगतान केंद्रीय औषधि भंडारा से भी करवाया गया और जिलों में सीएमओ से भी भुगतान लिया गया। प्रवीण सिंह की शिकायत पर ईओडब्ल्यू ने जांच की और आरोपों को सही पाया। 20 दिसंबर 2006 को ईओडब्ल्यू ने शासन को रिपोर्ट भेजी। शासन ने 14 फरवरी 2008 को घोटाले की जांच का आदेश दिया।