पांच राज्य के परिणामों को क्या मोदी की भाजपा की विदाई का पैमाना माने? 

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*लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी*

जैसा कि क़यास लगाएँ जा रहे थे कि पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम मोदी की भाजपा के लिए उसका भविष्य तय करेगे उसकी शुरूआत हो चुकी है।ये बात अलग है यह बात भाजपा सार्वजनिक रूप से स्वीकार नही कर रही है लेकिन लगता यही है कि उसे अहसास हो चला है कि झूट पर आधारित हमारी बिरयानी अब जनता में पकने वाली नही है। 

भारत को कांग्रेस मुक्त करने का नारा देने वाली मोदी की भाजपा को मोदी-शाह मुक्त होने के लिए कमर कस लेनी चाहिए नही तो लगता है जनता वोट बंदी से इस काम को खुद कर देगी।नागपुरिया आईडियोलोजी का स्वयंभू गुजरात मॉडल विकास के नाम पर व भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए सबका साथ सबका विकास का नारा,काला धन लाकर सभी को 15-15 लाख देने के वादा जिसे बाद में चुनावी जुमला कहकर छुटकारा पाना मोदी सरकार की विदाई का कारण बनने जा रही है।

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पाँच राज्य में मिली करारी हार को और जहाँ उनकी सरकार थी अब राज्यों के मुख्यमंत्रियों पर थोपी जा रही है जीत होती तो मोदी का जादू और अमित की चाणक्य नीति की जीत कहा जाता जबकि सच्चाई यह है कि ये चुनाव सिर्फ़ और सिर्फ़ नरेन्द्र मोदी के नाम पर और स्वयंभू मोदी के चाणक्य कहे जाने वाले मोदी की भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह की कूटनीतिक चालों के नाम पर लड़े गए क्या मोदी को आगे कर यह चुनाव नही लड़े गए ? सवाल उठता है कि किसके नाम का ढोल पीटा गया चुनावों में ? क्या उन प्रदेशों के पार्टी अध्यक्षों या मुख्यमंत्रियों के जो वहाँ कार्य कर रहे थे या मोदी अमित का ? उनका कही ज़िक्र नही था ज़िक्र था सिर्फ़ मोदी और अमित शाह का था ? 

अगर सही मायने में समीक्षा की जाए तो इन चुनावों में मोदी और शाह से भी अधिक सीनियर रहे भाजपा नेताओं को भी तवज्जो नही दी गई ? और हार का ठीकरा वहाँ की सरकारों के सर फोड़ा जा रहा है।अगर वहाँ की सरकारें काम नही करती तो सब जगह छत्तीसगढ़ जैसा हाल होता ? छत्तीसगढ़ को कहा जा सकता है की डबल विरोध हो गया लेकिन चुनावी नतीजों की समीक्षा के बाद ये साफ तौर पर कहा जा सकता है कि यह हार मोदी की हिटलर शाही व शाह के अंहकार की हार हुई है तेलंगाना मिज़ोरम की दुर्गति के लिए भी यह दोनों ज़िम्मेदार है ? 

दरअसल मोदी को देश की जनता ने बड़ी उम्मीदों पालकर 2014 में बागडोर सौंपी थी कि मोदी के आ जाने के बाद हम देश को एक नया देश बनते देखेंगे उसके दिमाग़ में जो ख़ाका था कि मोदी के नेतृत्व में भारत नई बुलंदियों को छुएगा ? पर उसे क्या मिला हिन्दू मुस्लिम के नाम पर एक ज़हर परोसा गया जो कुछ लोगों को तो पंसद आता है परन्तु बहुसंख्यक लोग उसे पंसद नही करते है उसी का परिणाम है यह चुनाव ? जनता को क्या मिला तर्कहीन भाषण जिनका देश के विकास से कोई सरोकार नही है ऐसी भाषा का प्रयोग जिसकी कल्पना भी नही की जा सकती प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति से और वो बोले जा रहे है और जनता उनकी बातों को दरकिनार कर रही है लेकिन वह फिर भी उसी लाईन पर चल रहे है ?

इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायधीशी ने सार्वजनिक तौर पर मोदी सरकार की आलोचना ही नही की बल्कि सचेत भी किया पर नही माने ? सीबीआई , आरबीआई , चुनाव आयोग , रक्षा मंत्रालय के सौदे भी खुद करने को लेकर शर्मिंदगी उठानी पड़ी राफ़ेल ख़रीद का मामला हो या नोटबंदी और आनन फ़ानन में जीएसटी को लागू करना गले की फाँस बन गई है ? भाजपा को पूरी तरह कैप्चरिंग कर ली गई ? कहने को सबसे बड़ी पार्टी बनने का दम भरने वाली भाजपा अन्दर ही अन्दर घूँट रही है ? नरेन्द्र भाई और अमित भाई की जोड़ी ने नई पार्टी बना ली है जिसे मोदी एण्ड शाह कंपनी के नाम से जाना जाने लगा है अब भाजपा वह पहले वाली भाजपा नही रही जिसमें सबकी सुनी जाती थी ऐसा पुरानी भाजपा के ही नेता बताते है पार्टी में लोकतंत्र नाम का शब्द खतम हो गया है ? 

यह भी सच है कि विपक्ष के पास कोई ठोस हथियार नही है लेकिन फिर भी विपक्ष को कुछ करने की ज़रूरत ही नही पड़ रही मोदी और शाह कंपनी बड़ी ही शान से उनको देश की सत्ता सौंप देंगे। हर बात में गांधी परिवार को टारगेट करना कहाँ तक उचित है यह किसी के समझ में नही आ रहा लेकिन करे जा रहे है लगता है यह भाजपा को कभी सत्ता न मिले ऐसा ज़रूर कर जाएँगे ? इन दोनों ने मिलकर ऐसी ही हालात बना दिए है ? इनके कार्यों की सज़ा नागपुरिया आईडियोलोजी भी भुगतेगी इससे भी इंकार नही किया जा सकता है ? भाजपा के पास अब बहुत ही कम समय बचा है मोदी एण्ड शाह कंपनी से पिंड नही छुटाया जा सकता ? लोकसभा संग्राम 2019 में इससे भी अधिक चौंकाने वाले परिणाम आएँगे इससे इंकार नही किया जा सकता है ?

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