बेहमई कांड के फैसले की तारीख बढ़ी,37 आरोपियों में से 30 की हो चुकी है मौत

1981 को दस्यु सुंदरी फूलन देवी ने कई डाकूओं के साथ मिलकर बेहमई गांव में एक साथ 22 लोगो को मौत के घाट उतारा था।

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कानपुर देहात — बहुचर्चित कानपुर देहात के बेहमई काण्ड के फैसले की तारीख बढ़ कर 18 जनवरी हो गयी है मामले से जुड़े अधिकांश लोग मर चुके है और जो ज़िंदा है उनकी भी हालत ठीक नही है। 1 आरोपी जेल में है 3 आरोपी बेल पर है और 3 आरोपी आज भी फरार चल रहे है। जबकि आरोपी बुज़ुर्गी के आलम में खुद को निर्दोष बता रहा है और वादी इंसाफ मांग रहा है। 39 साल बाद उम्मीद है कि इस 18 जनवरी को न्यायालय फैसला सुना देगा।

पुलिस कर्मियों के कंधों के सहारे कोर्ट रूम से आता ये बुज़ुर्ग डाकू पोशा है, जिसे पुलिस जेल से कोर्ट तारीख पर लायी है पोशा दस्यु सुंदरी फूलन देवी के साथ बेहमई में हुए नरसंहार में शामिल था बुज़ुर्ग डकैत पोशा पर आरोप है कि उसने 14 फरवरी 1981 को दस्यु सुंदरी फूलन देवी के साथ मिलकर बेहमई गांव में एक ही जाति के 22 लोगो को मौत के घाट उतारा था।

घटना में 40 डकैतो पर मुकदमा दर्ज किया गया था जिसमें 37 डकैतों को नामजद किया गया था जिसमे 30 आरोपियों की मौत हो चुकी है। 3 आरोपी ज़मानत पर है डाकू पोशा जेल में है और 3 डकैत डाकू मान सिंह, रामकेश और डाकू विश्वनाथ उर्फ अशोक अभी भी फरार है जिन्हें पुलिस 39 सालों से गिरफ्तार नही कर पायी है।

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बेहमई काण्ड में जेल से तारीख पर आए पोशा खुद को निर्दोष बताते है। उनकी माने तो घटना के वक्त पोशा वहां थे ही नही। पोशा बताते है कि बेहमई काण्ड में उनका कोई रोल नही था वो फूलन देवी को जानते थे और दस्यु सुंदरी फूलन देवी रिश्ते में डाकू पोशा की साली लगती थी। उनका बेहमई गांव भी आना जाना था ।

वही बेहमई काण्ड के वादी बताते है कि गांव में दस्यु सुंदरी फूलन देवी ने अपने गिरोह के साथ खून की होली खेली थी।इस दौरान 22 लोगो की हत्याएं की थी। आरोपियों को सज़ा मिलनी चाहिए वादी राजाराम बताते है कि मरने वालों में बाबा बेटा नाती सभी मौजूद थे तो क्या एक साथ घर के छोटे बड़े किसी के साथ गैंगरेप कर सकते है। वो सब निर्दोष थे राजाराम बताते है कि 39 साल से 3 आरोपी डकैत डाकू मान सिंह डाकू रामकेश और डाकू विश्वनाथ उर्फ अशोक अभी भी फरार है शासन प्रशासन आज तक नूरा कुश्ती लड़ रहा है। 39 साल से पुलिस उन्हें गिरफ्तार नही कर पायी है।

बेहमई काण्ड का भले ही 18 जनवरी को फैसला आ जाए लेकिन 39 सालों से जो न्याय की आस लगाए बैठे है। शायद उनका न्याय प्रक्रिया से विश्वास उठ भी गया हो। भले ही फैसला वादी पक्ष के हक में आए लेकिन देर से मिला न्याय भी अन्याय के बराराबर होता है।

(रिपोर्ट-संजय कुमार,कानपुर देहात )

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