एक गरीब बेटी की फरियाद , 24 घंटे में एक बार ही मुश्किल से मिलता है खाना
अम्बेडकरनगर — झोपड़िया कतरों को तरस जाती हैं। घटा उठती है महलों पर बरस जाती है।शायर ये पंक्तियाँ इस गरीब परिवार पर सटीक बैठती है।
केन्द्र व प्रदेश सरकार तरह तरह की जन कल्याणकारी योजनाओं द्वारा गरीबो को राहत पहुँचाने और उनके जीवन मे सुधार लाने के लिए पूर्ण रूप से प्रयास कर रही है , लेकिन उनके अधीनस्थ कर्मचारी ही कुर्सी पर बैठ सरकार की साख पर बट्टा लगा रहे है , जिससे सरकारी योजनाए उनके हक़दार गरीबो के दरवाजे तक पहुंचनी चाहिए , वो नही पहुँच पा रही है। एक गरीब परिवार की बेटी की दास्ताँ सुनकर आपकी भी आँखे जरूर नम हो जाएंगी । ये तस्वीरें है पूर्वांचल के जिले अम्बेडकरनगर की ।
दुसरों के रहमो करम पर जिंदा है परिवार…
दरअसल ये कहानी है कि अम्बेडकरनगर जिले के भीटी तहसील क्षेत्र की। जहां रहने वाली मनीषा की आँखे उस समय नम हो जाती है जब वो सिस्टम और अपनी बेबसी की कहानी सुनाती है । मनीषा का परिवार एक ऐसा परिवार है जो सरकार की तमाम योजनयो के बावजूद बदहाल है , यहां तक की 24 घंटे में एक ही बार बड़ी मुश्किल से खाना नसीब होता है वो भी दुसरों के रहमो करम पे , इस बेबस बेटी के दरवाजे तक सरकार की एक भी योजना अभी तक नहीं पहुंच पायी है ।
बरसात की खौफनाक रात अँधेरे में बिताने को मजबूर…
इस परिवार के पास घर के नाम पर महज एक झोपड़ी है जिसमे सरकार का दिया हुआ गैस सिंलेंडर तो है पर उसमे गैस नहीं , लालटेन युग में जी रहा है ये परिवार ,बरसात के खौफनाक रात अँधेरे में बिताता है। ये परिवार , क्योंकि इस परिवार के पास बिजली नहीं है , ज़िन्दगी जीने के लिए खाना बहुत जरूरी है पर ये परिवार 24 घंटे में एक ही बार खाना खाता है और फिर अगर बीच में पडोसी और गाँव वाले मदद न करें तो पूरे परिवार को भूखा ही सोना पड़ता है ।
बीबी पुर सिकहवाँ गाँव की रहने वाली मनीषा अपनी बेबसी की कहानी बताते हुए रुआंधी हो जाती है , मनीषा ने बताया कि इस एक झपड़ी में हमारा पूरा परिवार रहता है , जिसके किसी तरफ दीवार नहीं है , हम सब जमीन पर सोते है , अँधेरे में रहते है , अगर बारिश आती है तो और भी दुःस्वरी होती है । उसने बताया कि जब हम दूसरों को स्कूल जाते देखते हैं तो हमारा भी दिल पढने को कहता है , पर हमारे माता पिता के पास इतना पैसा नहीं की वो हमें पढ़ा सकें ।
प्रधान से लेकर अधिकारियों तक कर चुके सिफारिश
उसने बताया कि जो राशन हमें सरकारी दूकान से मिलता है वो पंद्रह दिन भी नहीं चल पाता , इसके बाद अगर दूसरो ने दे दिया तो खा लेते हैं । सुमन ने कहा कि हमारे पिता जब कोई मजदूरी का काम पते है वही से हमारा गुजारा होता है । उसने बताया कि हमें सरकार की कोई योजना का लाभ नहीं मिलता , प्रधान और अधिकारियों से सिफारिश करते करते थक चुके है ।
जब हमने गाँव के प्रधान और गाँव वालों से बात की तो उन्होंने बताया कि इस परिवार स्थिति बेहद बदहाल है , एक पडोसी ने हमें बताया कि कभी कभी ऐसा होता है कि इन लोगो के पास खाने को नहीं रहता ,तो हम सब कुछ मदद करते है।
वही गाँव के प्रधान कन्हैया लाल ने बताया कि इस परिवार के लिए हमने सभी अधिकारियों से कहा लिख कर दिया लेकिन एक भी अधिकारी यहां तक इस परिवार की स्थिति देखने नहीं आया ,सिर्फ आश्वासन की हो जायेगा , प्रधान ने बताया कि ये परिवार दाने दाने को मोहताज हो जाता है , जो राशन मिलता है ओ पन्द्रह दिनों के लिए भी पूरा नहीं होता , हम सब भरसक मदद करते है पर कितना कर सकते है ।
अब सवाल यहां लाजमी है कि जब सरकार ने ऐसे परिवारों के लिए तमाम जन कल्याणकारी योजनाएं लागू किया है , तो सिस्टम इसे धरातल पर पहुंचा क्यों नहीं पा रहा है और सरकार के मंसूबों पर बट्टा लगा रहा है।
(रिपोर्ट-कार्तिकेय द्विवेदी ,अम्बेडकरनगर)