बाराबंकीः 22 भाषाएं सीख परफेक्ट बन रहे सरकारी स्कूलों के बच्चे 

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बाराबंकी — सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले नौनिहालों को अब तक सिर्फ हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत जैसी तीन ही भाषाओं का ही अध्ययन कराया जाता था,

लेकिन अब वे स्कूल में मुफ्त में ही 22 भाषाएं सीख रहे हैं। 22 भाषाओं का ज्ञान लेकर सरकारी स्कूल के ये बच्चे महंगी फीस वाले कॉन्वेंट स्कूल के बच्चों को भी पीछे छोड़ रहे हैं। 

दरअसल, मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के तहत ‘भाषा संगम’ नाम से सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को देश के अलग-अलग राज्यों में बोली जाने वाली 22 भाषाओं की सीख देने की पहल शुरू की है। इसका उद्देश्य है कि बच्चा किसी भी राज्य में जाए तो उसके सामने भाषा की दीवार न खड़ी न होने पाए। बच्चे पूरी मस्ती के साथ इन भाषाओं को सीख रहे हैं। 21 दिसंबर तक इस ‘भाषा संगम’ में बच्चे 22 भाषाएं सीखेंगे।

बता दें कि बाराबंकी के बड़ेल प्राथमिक विद्यालय में जैसे ही सुबह 9 बजते हैं और बच्चों की प्रार्थना खत्म होती है वैसे ही उसके बाद शुरू होता है उन्हें नई भाषा का ज्ञान देने का सिलसिला। बच्चों को 22 भाषाओं को सिखाने के लिए हर तिथि व दिन पर मंत्रालय की तरफ से एक भाषा का शेड्यूल तैयार किया गया है। आज बारी थी कर्नाटक की कन्नड़ भाषा की सीख देने की। पहले शिक्षक बच्चों को अंग्रेजी में हेलो बोलते हैं फिर इसी तरह हिंदी में हेलो का सम्बोधन सिखाते हैं। फिर आपस में बच्चों को खड़ा कर भाषा का ज्ञान दिया जाता है। बच्चे आपस में बात करते हैं। रोमन में कन्नड़ और देवनागरी में हेलो को नमस्कारा कहते हैं।

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इसी तरह अंग्रेजी में ‘what is your name’ को हिंदी में ‘आपका नाम क्या है’ रोमन कन्नड़ भाषा में इसे ‘निम्म हेसरु एनु’ कहते हैं। अंग्रेजी में ‘my name is Laxmi’ को हिंदी में ‘मेरा नाम लक्ष्मी है’ कन्नड़ भाषा रोमन और देवनागरी में ‘नन्न हेसरु लक्ष्मी’ कहते हैं। अंग्रेजी के How are you को हिंदी में आप कैसे हो और रोमन व देवनागरी कन्नड़ में ‘नीवु हेगिद्दीरि?’। अंग्रेजी में I am fine तो हिंदी में मैं ठीक हूं और कन्नड़ देवनागरी और रोमन में ‘नानु चेन्नागिद्देने’ बोलकर कन्नड़ भाषा की सीख दी जा रही है।

सिखाई जा रही हैं ये 22 भाषाएं

सरकारी स्कूलों में 30 दिन तक के इस प्रोग्राम में बच्चों को असमी, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओड़िया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगू और उर्दू भाषाओं का ज्ञान दिया जा रहा है। इन भाषाओं का बेसिक नॉलेज दिए जाने का मकसद यही है कि अगर बच्चा किसी दूसरे राज्य में जाता है और कहीं खो जाए  तो वह उस राज्य की इतनी स्थानीय भाषा जरूर जानता हो जिससे वहां के लोग समझकर मदद कर सकें। इन बच्चों को घर में माता-पिता से भी सभी 22 भाषाओं में बात करने के लिए भी स्कूल के शिक्षक कह रहे हैं जिससे माता-पिता को भी इन भाषाओं का बेसिक ज्ञान हो जाए और बच्चों का अभ्यास।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय की तरफ से एक भारत श्रेष्ठ भारत के तहत भाषा संगम में स्कूल में प्रार्थना के समय बच्चों को कुल 22 भाषाओं का ज्ञान दिया जा रहा है। इसका उद्देश्य यही है कि बच्चे राज्य की बेसिक लैंग्वेज से अवगत हो सकें। जिस लैंग्वेज का जो डेज होता है उस पर उस लैंग्वेज में 5 शब्द सिखाए जाते हैं और अगले हफ्ते उन्हीं 5 शब्दों का रिवीजन कराया जाएगा। बच्चों से यह भी बताया जाएगा कि वे अपने घर पर अभिभावकों से भी इसी लैंग्वेज में बात करें।

(रिपोर्ट – हुमा हसन, बाराबंकी)

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