डॉक्टरों की लिखावट से हाईकोर्ट भी परेशान,डॉक्टर को किया तलब!

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लखनऊ–डॉक्टरों की अस्पष्ट लिखावट आम लोगो के अलावा अब हाईकोर्ट की भी समझ से परे है।  एक केस की सुनवाई के दौरान कोर्ट को मेडिको लीगल रिपोर्ट समझ नहीं आ रही थी। न तो याची का वकील उसे पढ़ पा रहा था और न ही सरकारी। ऐसे में कोर्ट ने रिपोर्ट बनाने वाले डॉक्टर को तलब कर लिया और खराब राइटिंग पर जवाब मांगा।

इस पर डॉक्टर ने कहा कि उनके यहां कम्प्यूटर नहीं है। इसलिए कम्प्यूटराइज्ड कॉपी नहीं बन पाती। हाई कोर्ट ने कहा, डॉक्टरी रिपोर्ट का केस में बहुत महत्व होता है। उससे सच्चाई पता करने में बड़ी मदद मिलती है। लेकिन बहुत बार रिपोर्ट पढ़ने में नहीं आती। यह रिपोर्ट ऐसी भाषा और राइटिंग में होनी चाहिए कि उसे वकील और जज भी पढ़ सकें। 

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जस्टिस अजय लांबा व जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की बेंच ने गुरुवार को एक याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह यह सुनिश्चित करे कि यदि किसी केस में मेडिको लीगल, पोस्टमॉर्टम, फरेन्सिक या इंजरी रिपोर्ट तैयार की गई है तो आरोपपत्र दाखिल करते समय विवेचनाधिकारी उनकी मूल कॉपी के साथ-साथ संबंधित अस्पताल के हेड या टाइपकर्ता द्वारा सत्यापित कम्प्यूटराज्ड या टाइप की हुई कॉपी भी दाखिल करे। कोर्ट ने मेडिकल एवं हेल्थ सेवाओं के डायरेक्टर जनरल की ओर से इस संबंध में 8 नवंबर, 2012 को जारी एक सर्कुलर के पूरी तरह से कार्यान्वयन का भी आदेश दिया है। कोर्ट ने सरकार से कहा है कि एक समय सीमा के भीतर इसके लिए जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। 

सुनवाई के दौरान कोर्ट के सामने आया कि 2012 में भी ऐसे ही एक केस में उसने डीजी मेडिकल एवं हेल्थ को तलब किया था। इसके बाद उन्होंने 8 नंवबर, 2012 को एक सर्कुलर जारी कर सभी मुख्य चिकित्साधिकारियों को इस संबंध में निर्देश दिए थे कि रिपोर्ट सरल भाषा में हो। 

 

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