…और ये होता है अभिव्यक्ति की आजादी का अंतिम पायदान

0 120

न्यूज डेस्क– आज़ादी के पहले समाचार पत्रों की शक्ल भाले की तरह होती थी |अब छाते की तरह हो गई है | कोई भी धंधेबाज़ सरकार पर रुतबा जमाने के लिए अपने काले-सफेद पैसे से अख़बार या चैनल खोल लेता हैं और हम श्रमजीवी नौकर हो जाते हैं |

यह भी नहीं सोचते कि नियुक्ति पत्र, वेतन की निरन्तरता जैसे विषय महत्वपूर्ण है | काम के घंटे, अवकाश चिकित्सा और आगे पढने-बढने के अवसर कितने हैं | भूखे पेट काम करते सरस्वती पुत्र अब भी मौजूद हैं, जिनके फोटो दिखाकर कोई बिल्डर, शराब माफिया, गुटकाबाज़ अपने काम निकालते रहते हैं | इन्होंने अभिव्यक्ति के छाते के नीचे अपने धंधों को छिपा रखा हैं |

Related News
1 of 1,031

इस व्यवसाय का सबसे निचला पायदान अंचल में काम करने वाला संवाददाता होता है जिसे कोई वेतन नहीं मिलता और प्रबन्धन की जवाबदारी जैसे विज्ञापन का लक्ष्य, प्रसारण की चिंता भी उसके कर्तव्य का अंग होता है | हवा खाकर जिन्दा रहना मुश्किल है, तो उसे कुछ धंधे के साथ गोरख धंधा भी करना होता है | आंचलिक सम्वाददाता, पत्रकार, गैर पत्रकार आदि के अधिकार के लिए लड़ने वाले वीरों की जमात कभी सम्मान समारोह तो कभी यातायात अभिकरण जैसी भूमिका में नमूदार होती है | इस व्यवसाय में अपने घाव, अपने मांस से ही भरने का रिवाज़ है |

वेतन बोर्ड नामक एक संस्था सरकार हमेशा गठित करती है | इसकी सिफारिशें सुनने को बेहद अच्छी लगती हैं, पर लागू कराने में सरकार की अनिच्छा होती है | सन्गठन भी बयान तक सीमित हो गये हैं |

अभिव्यक्ति की आजादी का अंतिम पायदान हत्या होती हैं, जिसकी जाँच पुलिस खात्मा लगाने के लिए करती थी और करती रहेगी |

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

Comments
Loading...