लखनऊ — यूपी पुलिस के मुखिया को लेकर अभी भी असमंजस बना हुआ है।डीजीपी घोषित किए जाने के 17 दिन बाद भी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर तैनात ओपी सिंह अब तक अपना पदभार ग्रहण नहीं कर सके हैं।
एक ओर जहां पुलिस महकमा अपने नये महानिदेशक का इन्तजार कर रहा है तो दूसरी तरफ ओपी सिंह को केंद्र सरकार द्वारा मुक्त न किए जाने से योगी सरकार असमंजस में हैं।दरअसल माना जा रहा है कि इन्तजार बढऩे के साथ ही ओपी सिंह के रिलीव होने की संभावनाएं कम हो गई हैं। डीजीपी के लिए कुछ नए नामों पर विचार किए जाने की चर्चाएं जरूर हैं, लेकिन इस विषय पर जिम्मेदार कुछ भी सटीक कहने से बच रहे हैं।जिसको लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
वहीं स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह का कहा कि ओपी सिंह को डीजीपी का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया है। केंद्र में उन्हें रिलीव करने की प्रक्रिया चल रही है।जबकि प्रमुख सचिव, गृह अरविंद कुमार भी केवल इतना कहते हैं कि अभी ओपी सिंह को मुक्त किए जाने की कोई सूचना उत्तर प्रदेश को नहीं मिली है।
गौरतलब है कि जब तक केंद्र सरकार ओपी सिंह को मुक्त न कर दे अथवा उन्हें रिलीव करने से इन्कार न कर दे, तब तक राज्य सरकार द्वारा किसी नए नाम पर विचार की स्थिति नहीं बन रही है। चूंकि राज्य सरकार ने 30 दिसंबर को ओपी सिंह को डीजीपी बनाने का प्रस्ताव सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय को भेज दिया था, इसलिए जब तक प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से स्थिति स्पष्ट नहीं होती, तब तक किसी और प्रस्ताव की उम्मीद भी नहीं बन रही। सच कहें तो पूरा मामला इसीलिए उलझा हुआ है।वहीं केंद्र सरकार की मंशा साफ होने तक किसी नए फैसले की संभावना नजर नहीं आ रही।
सपा के करीबी होने का भी लगा आरोप…
बता दें कि समाजवादी सरकार में ओपी सिंह महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव तक से उनकी करीबी जगजाहिर रही है। ऐसे में उन पर भाजपा से जड़े कुछ लोगों ने ऊपर तक यह बात पहुंचाने में कोताही नहीं बरती। चर्चाओं में यह भी है कि केंद्र तक पहुंची शिकायतों ने ही ओपी सिंह की राह में रोड़े अटका दिए। वरना शुरू में यह बात भी चल रही थी कि खरमास खत्म होते ही वह आ जाएंगे। पर 13 जनवरी को जब केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय ने 20 अधिकारियों को अवमुक्त करने संबंधी आदेश जारी किये तभी यह साफ हो गया था कि ओपी सिंह को अब मौका नहीं मिल सकता। फिर भी स्थिति साफ न होने से उम्मीद बनी रही।