भारत का त्योहारों पर खानपान का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व व इतिहास काफी रोचक रहा है, लेकिन इस बार कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते कई जगहों पर सार्वजनिक तौर पर सजने वाली दुकानें या तो कम दिखेंगी या फिर नहीं.
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दरअसल होली के त्योहार पर खानपान की बात की जाए तो दो व्यंजनों की बात तो होती ही है, एक गुजिया और दूसरी ठंडाई. ठंडाई वह पेय है, जो सर्दियों के जाने और गर्मियों के आने के बीच स्वादिष्ट और पौष्टिक आहार माना गया है, लेकिन होली परंपरा में इसका सीधा संबंध भांग के साथ रहा है.
होलिका दहन से होती है होली का त्योहार
वैसे तो आपको पता ही है कि होलिका दहन से इस त्योहार की शुरूआत होती, फिर रंग खेलने वाली होली या धुलेंडी के तौर पर मनाई जाती है. होली यहीं खत्म नहीं हो जाती बल्कि इसके भी तीन दिन बाद रंगपंचमी तक होली का त्योहार मनाया जाता है.लेकिन इस बार Covid-19 के चलते कई तरह के प्रतिबंधों के कारण कुछ राज्यों में होली सीमित ढंग से मनेगी.
भांग के साथ होली का संबंध
आपको बताते हैं कि भांग के साथ होली का संबंध कैसे पारंपरिक तौर पर रहा है. भांग का सीधा संबंध भगवान शिव के साथ रहा है, लेकिन होली के साथ भांग की परंपरा के पीछे शिव से सीधे तौर पर जुड़ी कहानी नहीं है.
एक किंवदंती के अनुसार शिव वैराग्य में थे और अपने ध्यान में लीन. पार्वती चाहती थीं कि वो यह तपस्या छोड़ें और दांपत्य जीवन का सुख भोगें. तब कामदेव ने फूल बांधकर एक तीर शिव पर छोड़ा था ताकि उनका तप भंग हो सके. इस कहानी के मुताबिक वैराग्य से शिव के गृहस्थ जीवन में लौटने के उत्सव को मनाने के लिए भांग का प्रचलन शुरू हुआ. लेकिन कथाएं तो और भी हैं.
भांग की धार्मिक मान्याता…
धार्मिक मान्यताओं में कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान जो अमृत निकला था, उसकी एक बूंद मंदार पर्वत पर गिर गई थी. इसी बूंद से एक पौधा पैदा हुआ, जिसे औषधीय गुणों वाला भांग का पौधा माना जाता है. दूध में बादाम, पिस्ता और काली मिर्च के साथ थोड़ी सी भांग मिलाकर बनाई जाने वाली ठंडाई लोकप्रिय पेय रहा है.
कहते हैं तनावमुक्ति के लिए भांग का सेवन देश भर में कई तरह से किया जाता है. खासकर होली के समय मिठाइयों, पकवानों और पान जैसी चीज़ों में भांग मिलाकर खाई खिलाई जाती है.
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