श्रावण मास भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। इस माह में भगवान श्री शिव की पूजा करने से व्यक्ति को समस्त सुखों की प्राप्ति होती है।
यह भी पढ़ें-PubG खेलते-खेलते छात्र ने खुद को गोली से उड़ाया, जानें वजह..
श्रावण मास के विषय में प्रसिद्ध पौराणिक मान्यता है कि मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी। जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे।
भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का अन्य कारण यह भी है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।
सोमवार है भगवान शिव को अत्यधिक प्रिय-
इस माह में प्रत्येक सोमवार के दिन भगवान श्री शिव की पूजा करने से मनुष्य को संसार के सभी सुखों की प्राप्ति होती है। श्रावण मास के सोमवार व्रत, जो व्यक्ति करता है उसकी सभी इछाएं पूर्ण होती है। इन दिनों किया गया दान पूण्य एवं पूजन समस्त ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के समान फल देने वाला होता है। इस व्रत का पालन कई उद्देश्यों से किया जा सकता है। जिनमें वैवाहिक जीवन की लम्बी आयु और संतान की सुख-समृ्द्धि के लिए या मनोवांछित वर की प्राप्ति करती है।
सावन सोमवार व्रत कुल वृद्धि, लक्ष्मी प्राप्ति और सुख -सम्मान देने वाले होते हैं। इन दिनों में भगवान शिव की पूजा जब बेलपत्र से की जाती है, तो भगवान अपने भक्त की कामना जल्द से पूरी करते है। बिल्व पत्थर की जड़ में भगवान शिव का वास माना गया है। इस कारण यह पूजन व्यक्ति को सभी तीर्थों में स्नान करने का फल प्राप्त होता है।
रुद्राभिषेक का महत्व-
रुद्राभिषेक अर्थात भूतभावन शिव का अभिषेक, शिव को ही रूद्र कहा जाता है। हमारे धर्मग्रंथों व पं. कमल किशोर मिश्र के मतनुसार, हमारे द्वारा किऐ गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारी कुंडली से पातक कर्म एंव महापातक भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।