न्यूज डेस्क– अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर यूपी समाचार की तरफ से प्रस्तुत है एक विशेष संकलन-
( अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष संकलन )
हम सब जानते हैं कि भारत एक प्रजातान्त्रिक देश है। एक भौगोलिक क्षेत्र जैसे देश , राज्य ,जिला ,तहसील और उसमें मौजूद शासन व्यवस्था दोनों मिलकर ‘पॉलिटी ‘ कहलाते हैं। पॉलिटी शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है। इसी शब्द से ही पॉलिटिक्स (राजनीति) का प्रादुर्भाव हुआ। भारत की राजनीति अपनेसंविधान के ढांचे में काम करती है। भारत राजतन्त्र का अनुसरण करता है ,अर्थात केंद्र में एक केंद्रीय सत्ता वाली सरकार और परिधि में राज्य सरकारें। इन सरकारों में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी का अर्थ व्यापक है। यह केवल ‘ वोट का अधिकार ‘ से ही सम्बंधित नहीं है ; बल्कि इसमें शामिल हैं -निर्णय लेने की प्रक्रिया , राजनैतिक सक्रियता ,राजनीतिक चेतना आदि।
समय – समय पर इतिहास राजनीति में महिलाओं के प्रतिभा प्रदर्शन का साक्षी रहा है। विश्व के राजनैतिक पटल पर फ्रांस की महारानी मैरी एंटोनेट से लेकर इंग्लैण्ड और आयरलैंड की महारानी एलिजाबेथ तक ने राजनीति के गलियारे में अपनी एक खास पहचान बनाई। भारत ने भी ऐसे ही प्रभावशाली महिला राजनीतिज्ञों संबंधी आंकड़े समय – समय पर देखे हैं। कई लोगों ने उनकी योजनाओं और राजनीतिक गुणों की सराहना की है और कई ने आलोचना भी की है। हालाँकि देश के विकास में उनके योगदान को कभी भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। इस राजनीतिक गलियारे में भी कुछ सशक्त महिला राजनेता रही हैं , जैसे – इंदिरा गाँधी ने भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूपमें,पहली कैबिनेट मंत्री राजकुमारी अमृत कौर ,पहली मंत्री विजय लक्ष्मी पंडित , उत्तर प्रदेश की पहलीमहिला मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी आदि ने ख्याति पायी। उस दशक से काफी आगे बढ़ चुके भारत की कुछ प्रतिभाशाली राजनीतिज्ञों में भारत की प्रथम राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के अलावा सुषमा स्वराज, सोनिया गाँधी, शीला दीक्षित , ममता बनर्जी , जयललिता ,मायावती , वसुंधरा राजे सिंधिया ,अम्बिका सोनी , सुप्रिया सुले , अगाथा संगमा आदि कुछ ऐसे नाम हैं जो व्यपक स्तर पर अपनी पहचान बना चुकी हैं। भारत में निर्वाचित होने के अधिकार , भाषण की स्वतंत्रता ने संवैधानिक अधिकार के रूप में लैंगिक समानता की वकालत की , लेकिन ऐतिहासिक दृष्टि से महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी कम ही बनी हुई है।
देश की तमाम राजनीतिक पार्टियां महिला सशक्तिकरण और राजनीति में उनका प्रतिनिधित्व बढ़ाने की कोशिश करने के दावे करते रहते हैं ; लेकिन क्या वाकई में महिलाओं को राजनीति में उनका हक़ मिल पाया है । संसदीय लोकतंत्र में महिलाओं की भागीदारी के मामले में भारत का स्थान 108वां है। भारत के 73वें संवैधानिक संसोधन अधिनियम के अनुसार महिलाओं को भारत के राजनैतिक शासन- प्रबंध में बराबरी का हिस्सा मिल चुका है ; लेकिन जब हम राजनीति में महिलाओं की भागीदारी के वास्तविक आंकड़ों को देखते हैं तो एक कड़वा सच दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के बारे में उभरकर सामने आता है कि वर्तमान में भारत की लोकसभा में 543 सदस्यों में से केवल 66 महिला सदस्य हैं और राजसभा के 233 सदस्यों में से केवल 28 महिला सदस्य हैं। ये एक विडंबना ही है कि राजनीतिक दलों ने महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने के लिए 33% तक आरक्षण देने पर एक हलचल पैदा कर दी थी; लेकिन जब महिला नेताओं को टिकट देने की बात आती है तो वे शायद ही कभी पहली पसंद बन पाती हैं। इस प्रकार भारतीय राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी को उँगलियों पर ही आसानी से गिना जा सकता है।
राजनीति में लैंगिक असमानता से निपटने के लिए भारतीय सरकार नेस्थानीय सरकारों में महिला सीटों के लिए आरक्षण की स्थापना की है लेकिन प्रायः यह देखा जाता है कि राजनीतिक चेहरा तो महिला का रहता है और उसके पीछे कोई पुरुष ही कार्य संभालता है। अगर तमाम राजनीतिक दलों के ढाँचे की बात करें तो महिला कार्यकर्त्ता को हमेशा ही हाशिये पर रखा जाता है। कई राजनीतिक दल पंचायतों से लेकर निगमों तक में महिलाओं के आरक्षण को शानदार कामयाबी की तरह पेश करते हैं , मगर संसद और विधानसभा के नाम पर आकर आरोप – प्रत्यारोप में बहस को उलझ देते हैं। मेरा सवाल है राजनीतिक पार्टियों से कि हमारे राजनीतिक दलों की महिला मोर्चा केवल महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए ही क्यों सक्रिय कर दी जाती हैं ? कहीं हमारे राजनीतिक दल औरतों को राजनीति में भी घरेलू औरत की तरह तो स्थापित नहीं करते। वह चाहते तो बड़ी संख्या में महिला उम्मीदवारों को टिकट दे सकते थे। उन्हें कार्यकर्ता बनाकर राजनीति में आगे लाने का प्रयास करके एक अभियान चला सकते थे।
महिलाएं , जो कि जननी होती हैं और अपने बच्चे को पाल – पोसकर अच्छा जीवन प्रदान करती हैं तो ये महिलाऐं देश के विकास की भी जिम्मेदारी अच्छे से उठा सकती हैं; तो राजनीति में सुरक्षा के नाम पर महिलाओं की भागीदारी के सवाल से क्यों बचते हैं हमारे नेता ?
( श्वेता सिंह )