उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव (UP Nikay Chunav ) को लेकर नामांकन प्रक्रिया भी शुरू हो गई है. राजनीतिक पार्टियों ने भी चुनाव जीतने के लिए प्रत्याशियों के टिकट फाइनल करने के साथ-साथ रणनीति बनानी भी शुरू कर दी है. लेकिन मेरठ में नगर निगम सीट अस्तित्व में आने के बाद से एक मिथक देखने को मिला है . जिस पार्टी की प्रदेश में सरकार रहती है. उस पार्टी का प्रत्याशी कभी भी मेयर पद पर चुनाव नहीं जीत पाता है. ऐसे में देखना होगा की अबकी बार वह मिथक टूटता है. या फिर वही इतिहास फिर से देखने को मिलेगा.
मेरठ महानगर की बात की जाए तो वर्ष 2000 से पहले मेरठ नगर पालिका में आता था. 1995 से लेकर 2000 तक बसपा के अयूब अंसारी नगर प्रमुख के पद पर कार्यरत रहे थे. उसके बाद वर्ष 2000 में सीमा का विस्तार हुआ 70 वार्ड हुए. बसपा के हाजी शाहिद अखलाक बतौर मेयर चुने गए. उस समय उत्तर प्रदेश में भाजपा के राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री पद पर कार्यरत थे.
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वर्ष 2006 में 80 वार्ड हो गए. तब भाजपा की मधु गुर्जर महापौर बनी. उस समय बसपा सरकार में थी. वहीं सन 2012 की बात की जाए तो प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी. जब नगर निगम के चुनाव हुए तो भाजपा के हरिकांत अहलूवालिया महापौर पद पर नियुक्त हुए. उसके बाद 2017 में जब चुनाव हुआ तो भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी. लेकिन एससी कोटे से बसपा की सुनीता वर्मा महापौर चुनी गई.
सपा-भाजपा दोनों बना रहे रणनीति
यूं तो नगर निकाय चुनाव (UP Nikay Chunav ) में सभी पार्टियों के लिए काफी अहम है. इस बार अनुमानों के अनुसार समाजवादी पार्टी और भाजपा के बीच सीधी टक्कर मानी जा रही है. क्योंकि अभी तक जहां समाजवादी पार्टी से कोई भी मेयर पद पर चयनित नहीं हो पाया है . विशेषज्ञों का कहना है कि अबकी बार यह चुनाव देखना काफी रोचक होगा.
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