(रिपोर्ट-प्रणव विक्रम सिंह)
UP Criminals, लखनऊः पुलिस द्वारा त्वरित, निष्पक्ष तथा गहन विवेचना, आवश्यक साक्ष्य संकलन और कोर्ट में प्रभावी पैरवी के बाद कोई भी अपराधी कानून की गिरफ्त से बच नहीं सकता है। पूर्व विधायक राजू पाल हत्याकांड के सभी दोषियों को मिली सजा इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। इस हाई प्रोफाइल हत्याकांड में शामिल 06 हत्यारों को आजन्म कारावास और एक गुनहगार को चार साल की सजा हुई है। यदि आज दुर्दांत अपराधी अतीक अहमद और अशरफ जिंदा होते तो निश्चित ही इस मुकदमे में कठोरतम सजा पाकर अपराधियों के लिए एक नज़ीर बनते।
दो दशकों बाद राजू पाल के परिजनों को मिला इंसाफ
लगभग दो दशकों की लंबी प्रतीक्षा के बाद राजू पाल के परिजनों को मिला इंसाफ चीख-चीख कर कह रहा है कि शुचितापूर्ण और पारदर्शी तरीके से यदि आरंभ में ही विवेचना हो गई होती तो ये न्याय वर्षों पूर्व हो जाता और हजारों लोग इस दुर्दांत माफिया के कहर से बच जाते। कानून का इकबाल बुलंद होता, सो अलग। लेकिन भला ये क्यों होता?
सियासत की सरपरस्ती में पलते इन दुर्दांत माफियाओं की देहरी पर सजदा करने वाला कानून भला इन्हें कैसे गिरफ्तार कर सकता था! तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने तो अतीक और अशरफ़ को क्लीन-चिट प्रदान कर दी थी। इन्होंने ही मुख़्तार अंसारी की इज्ज़त अफजाई और हौसला अफजाई के लिए ‘LMG कांड’ का खुलासा करने वाले पुलिस उपाधीक्षक शैलेंद्र सिंह और उनके परिवार को भी खून के आंसू रोने के लिए विवश कर दिया था।
सरकार-अपराधियों के बीच दो गज की दूरी बहुत जरूरी
कहने का तात्पर्य है कि सत्ता और अपराध की गलबहियों के बीच में दबकर इंसाफ का दम घुट जाता है। इंसाफ की जिंदगी के लिए सरकार और अपराधियों के बीच दो गज की दूरी बहुत जरूरी है। दरअसल जब ‘दोषी-हित’ में विवेचना के दौरान महत्वपूर्ण बिंदुओं को सप्रयास छुपाया जाता है, साक्ष्य संकलन में नियोजित ढंग से शिथिलता बरती जाती है और असमर्थ अभियोजन न्यायालय में ढीली-ढाली पैरवी करता है तो अपराधी दोषमुक्त हो ही जाता है। अपराधी से ‘माननीय’ बनने का सफर इसी डगर से होकर जाता है। जब अपराधी स्वयं ‘माननीय’ बन जाता है तो उसे रोक पाना पूर्व से और अधिक मुश्किल हो जाता है।
अपराध के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति लागू
साल 2017 के पहले तक उत्तर प्रदेश में यही स्थिति थी। माफियाओं की समानांतर सरकारें चलती थीं। कुछ छुटपुट घटनाओं पर कार्यवाही कर उनके ‘रहम’ पर पलने वाली पुलिस जनता के बीच कानून के जिंदा होने के ‘वहम’ को बरकरार रखती थी। वक्त बदला। अपराधियों के ऊपर से सत्ता की सरपरस्ती गायब हो गई। अपराध के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति लागू हुई। समाज में स्वयं व्यवस्था के रूप में स्थापित इन दुर्दांत माफियाओं के अपराधों की सख्ती, पारदर्शिता तथा पूरी दक्षता के साथ विवेचना और कोर्ट में प्रभावी पैरवी से इनके गुनाहों के फैसले होने लगे।
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हैरत होती है कि एक बार सांसद, पांच बार विधायक रहे अतीक अहमद पर 44 साल में 101 से अधिक मुकदमे दर्ज हुए, लेकिन साल 2023 में पहली बार उसे किसी मुकदमे में सजा मिली। इतने सालों तक अधिकांश मुकदमों में वो सिर्फ बरी होता रहा। तमाम पीड़ित मुकदमा लड़ते-लड़ते मर गए, अनेकों ने आस ही छोड़ दी।
हर सुनवाई पर कानून लज्जित और माफिया का इकबाल बुलंद होता रहा। अंततः योगी सरकार के प्रयासों से उसे एक मुकदमें में आजीवन कारावास की सजा हुई। ऐसे प्रयास मुलायम, मायावती और अखिलेश आदि की सरकारों में हुए होते तो ये इतने दुर्दांत न हो पाते। बहुत सारे लोगों का जीवन भी बच जाता। इसी तरह कई दशकों से 65 से अधिक मुकदमों को तमगों की तरह अपनी छाती पर सजाए मुख्तार अंसारी को बीते 18 महीने पहले कानून की ताकत का अहसास हुआ। उन्हें 02 बार आजीवन कारावास समेत आठ मामलों में सजा हुई है।
सात वर्षों में अब तक 24,743 अपराधियों मिली सजा
ध्यातव्य है कि सरकार द्वारा कोर्ट में प्रभावी पैरवी के जरिए विगत 07 वर्षों में 24,743 से अधिक अपराधियों को सजा दिलायी गई है। गैंगस्टर एक्ट अधिनियम के तहत 71,600 से अधिक अपराधियों को जेल भेजा जा चुका है। यही नहीं, अब तक 16 अभियुक्तों को मृत्युदंड व 1,676 को आजीवन कारावास, 304 अपराधियों को 20 वर्ष या उससे अधिक की सजा कराने में यूपी सरकार सफल हुई है।
माफिया सरगना सुन्दर भाटी, आकाश जाट, कुंटू सिंह, योगेश भदौड़ा, अमित कसाना, माफिया एजाज, विजय मिश्रा, अनिल दुजाना, अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी, बच्चू यादव, संजय सिंह सिंघला, रणदीप भाटी और अनुपम दुबे जैसे अनेक दुर्दांत अपराधियों को कोर्ट के द्वारा सजा मिलना कानून के पुनर्जीवित होने का साक्ष्य है।
भला कोई सपने में भी सोच सकता था कि गवाह, जिनसे अपने जान की भीख मांगते हों, पुलिस, जिनकी खिदमत में ही खुद को महफूज समझती हो, जज साहबान, जिनके मुकदमे अपने पास से ट्रांसफर कर देने में ही अपनी खैर समझते हों, ऐसे खूंखार अपराधियों को भला कोई सजा भी दे सकता है?
ऐसे कुख्यात और बेरहम अपराधियों को फिल्मों और कहानियों में ही सजा मिलते हुए देखकर संतुष्टि हासिल करने को विवश समाज आज उन्हें सलाखों के पीछे असहाय, बेबस और भयभीत देखकर विस्मित और हर्षित है। कानून के इकबाल को बुलंद और लोकतंत्र को मजबूत करती ऐसी ऐतिहासिक कार्यवाहियां व्यवस्था की अडिग सत्यनिष्ठा, अटूट लोकनिष्ठा और अविचल कर्तव्यनिष्ठा के समेकित प्रयासों से ही संभव हो पाती हैं।
नए उत्तर प्रदेश में मजबूत हो रही कानून राज की बुनियाद
दशकों से अराजकता और अव्यवस्था के दलदल में गोते लगा रही, अपराध की अनुचरी बनी ‘व्यवस्था’ ने कानून का जो सबक साल 2017 के बाद पढ़ा है, अगर वही सबक पहले आत्मसात कर लिया होता तो निश्चित ही अनेक माफिया सरगनाओं, दुर्दांत अपराधियों और अपराध की लंकाओं का वजूद ही नहीं रहता अथवा वे वजूद में ही नहीं आतीं। ध्यान रहे, जब अपराधी को कोर्ट द्वारा सजा मिलती है तो कानून के राज की बुनियाद और अधिक मजबूत हो जाती है। ‘नए उत्तर प्रदेश’ में ये बुनियाद दिनानुदिन मजबूत हो रही है।
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