फर्रुखाबाद– स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के अंतर्गत जिले को खुले में शौचमुक्त करने के लिए अब तक करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं। मकसद है कि कोई भी खुले मे शौच न जाए। फिर भी मजबूती से निगरानी न होने का परिणाम है कि जिन लाभार्थियों के शौचालय बने हैं वे ही खुले में शौच जा रहे हैं।
जिले को खुले में शौचमुक्त करने के लिए पहले मार्च तक का समय तय किया गया था। मगर बजट के अभाव में शौचालय का निर्माण तेजी के साथ नहीं हो सका। प्रशासन शौचालय का निर्माण कराने के बाद ही उस गांव को ओडीएफ मान लेता है मगर ओडीएफ के प्रस्ताव होने के बाद किस प्रकार की जवाबदेही होनी चाहिए इस पर गौर नहीं किया जा रहा है। भले ही जिले के गंगा किनारे के सभी 55 गांव खुले में शौचमुक्त बहुत पहले हो चुके हैं फिर भी इन गांव की जो स्थिति है यह किसी से छिपी नहीं है। नदियों के किनारों को गंदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। जहां तक गंगा किनारे के अलावा ओडीएफ हो चुके गांव की स्थिति है तो प्रशासन की ओर से वाहवाही लेने के चक्कर में आनन फानन में ओडीएफ का प्रस्ताव तो कर दिया गया मगर यहां पर शौचालय का निर्माण कराने के बाद लाभार्थियों की निगरानी नहीं कराई गई। नतीजा है कि ओडीएफ हो चुके गांव में सबसे अधिक लोग खुले में शौच जा रहे हैं।
शुरुआत में जरूर गांव में पंचायती राज विभाग की टीम ने डटकर निगरानी की थी। बाद में मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए मजबूती के साथ काम करने की जरूरत नहीं समझी गई। यही वजह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी यह नहीं मालुम पड़ रहा है कि जिला ओडीएफ होने के करीब है। प्रशासन के रिकार्ड को माने तो जिला ओडीएफ होने से अब कोसों दूर नहीं रह गया है। एक ब्लाक पूर्व में ही ओडीएफ हो चुका है।
(रिपोर्ट – दिलीप कटियार , फर्रुखाबाद )