वॉशिंगटन– अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चेतावनियों को दरकिनार कर अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने यरुशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता दे दी है। उन्होंने दशकों पुरानी अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय नीति को तोड़कर ऐसा किया। इस कदम से जहां इजरायल खुश है, वहीं अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में चिंता है।
वे इसे पश्चिम एशिया में हिंसा भड़काने वाला कदम मानते हैं। यह कदम पूर्व अमेरिकी प्रशासनों की कोशिशों के विपरीत भी माना जा रहा है जो कि इस कदम को अशांति के डर से अब तक रोके हुए थे।
इजरायल पूरे यरुशलम शहर को अपनी राजधानी बताता है जबकि फिलिस्तीनी पूर्वी यरुशलम को अपनी भावी राजधानी बताते हैं। असल में इस इलाके को इजरायल ने 1967 में अपने कब्जे में ले लिया था। इजरायल-फिलस्तीन विवाद की जड़ यह इलाका ही है। इस इलाके में यहूदी, मुस्लिम और ईसाई तीनों धर्मों के पवित्र स्थल हैं। यहां स्थित टेंपल माउंट जहां यहूदियों का सबसे पवित्र स्थल है, वहीं अल-अक्सा मस्जिद को मुसलमान बेहद पाक मानते हैं। मुस्लिमों की मान्यता है कि अल-अक्सा मस्जिद ही वह जगह है जहां से पैगंबर मोहम्मद जन्नत पहुंचे थे। इसके अलावा कुछ ईसाइयों की मान्यता है कि यरुशलम में ही ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था। यहां स्थित सपुखर चर्च को ईसाई बहुत ही पवित्र मानते हैं।
यरुशलम पर वैसे तो आज भी इजरायल का ही कब्जा है और उसकी सरकार व प्रमुख विभाग भी इसी इलाके में स्थित हैं। यहां तक कि राष्ट्रपति आवास भी यहीं पर है मगर पूर्वी यरुशलम पर उसके दावे को अंतरराष्ट्रीय समुदाय मान्यता नहीं देता। अंतरराष्ट्रीय समुदाय का मानना है कि यरुशलम की स्थिति का फैसला बातचीत से ही होना चाहिए। यही वजह है कि किसी भी देश का दूतावास यरुशलम के बजाय इजरायल के दूसरे बड़े शहर तेल अवीव में स्थित हैं।