बहराइच— उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले रहने वाले रामेश्वर तिवारी ने आजादी की लड़ाई में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया । 1942 में हुए आंदोलन में उन्होंने जिले के 632 लोगों के साथ डेढ़ साल तक जेल में रहकर अंग्रेजों की तमाम यातनाएं झेली थी ।
इनका कहना है, उस वक्त के समय माहौल ऐसा खराब था कि इंसान को इंसान नहीं समझा जाता था अंग्रेजी शासन की बर्बरता के खिलाफ एकजुट होकर लोगों ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की थी । लाखों लोगों की कुर्बानियों के बाद हमे आजादी मिली । लेकिन आज के समय मे जिस तरह से देश मे भ्रस्टाचार बढ़ रहा है । राजनीति का स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है । इसे देखकर काफी दुख भी होता है ।
बता दें कि जिले के फखरपुर इलाके के खपुरवा गांव निवासी 103 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामेश्वर तिवारी के सामने जैसे ही स्वतंत्रता आंदोलन की बात चलती है वे देशभक्ति में सराबोर हो जाते हैं । तिवारी जी बताते हैं कि अंग्रेजों का शासन आम जनता के लिए यातना का पर्याय बन चुका था सामान्य पुलिसकर्मी के सामने गांव के मुखिया भी बैठ नहीं सकते थे डर का आलम यह था कि लोग अपने घर के सामने लगे पेड़ की डाल भी बिना पुलिस की मर्जी के काट नहीं सकते थे।
तिरंगा झंडा उठा कर चलने पर गांव का चौकीदार डंडा लेकर दौड़ाता था वह बताते हैं कि महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू समेत तत्कालीन महानायकों के विचारों से प्रेरित होकर फखरपुर ब्लॉक में आजादी के आंदोलन को गति प्रदान करने का प्रयास तेज किया गया और पुलिस की प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा पहली बार 1935 में उन्हें 2 महीने के लिए जेल में डाल दिया गया था सन 1942 में दोबारा पुलिस उन्हें घर से पकड़ ले गई और डेढ़ साल तक जेल में रखा ।
15 अगस्त 1947 को जब दिल्ली के लाल किले पर आजाद भारत में तिरंगा फहराया गया तो समूचे देश वासियों का सिर गर्व से ऊंचा हो गया। सीना चौड़ा हो गया यह वह अनुभूति थी जिसके लिए दशकों से देशवासी स्वतंत्रता के जंग में खुद को न्योछावर कर रहे थे ।
इनका कहना है । कि उस वक्त संकल्प लिया गया था कि भारत का हर स्तर पर मिल जुलकर विकास किया जाएगा लेकिन आज के समय मे ये संकल्प देश मे व्याप्त भ्रष्टाचार और राजनीति के गिरते स्तर के कारण दम तोड़ता नजर आ रहा है ।
(रिपोर्ट-अनुराग पाठक,बहराइच)