हिंदू धर्म में प्राचीन समय से चले आ रहे रिती-रिवाज,तिथियों, त्योहारों का विशेष महत्व होता है। क्योंकि सदियों से फाल्गुन माह के शुक्लपक्ष की एकादशी को रंगभरी एकादशी यानी रंगों का उत्सव मनाया जाता है। सनातन धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है। क्योंकि एकादशी के दिन ही बाबा विश्वनाथ मां भगवती का गौना कराकर वापस काशी आए थे। इसलिए फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रंगभरी एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह साल में आने वाली सभी एकादशियों में से ये एक ऐसी एकादशी है, जिसमें भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। आइए आपको बताते है क्यों कहते हैं इसे रंगभरी एकादशी।
क्यों मनाई जाती है रंगभरी एकादशी:
परंपरा के अनुसार इस दिन यानी कल (14 मार्च) सोमवार को रंगभरी एकादशी होगा। बहुत ही शुभ तिथि को एकादशी पड़ने से इस दिन ही आमलकी एकादशी का व्रत भी रखा जाएगा। इस दिन पूरे काशी को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। क्योंकि इस दिन भोलेनाथ ने मां गौरा का गौना कराकर अपने साथ लेकर काशी आए थे। इसलिए रंगभरी एकादशी के दिन काशी में भगवान शिव के भक्त मां गौरा के स्वागत के लिए भव्य रूप से काशी को सजाकर खुशी से झूमते हुए रंग गुलाल उड़ाते हैं।
रंगभरी एकादशी को क्यों कहते हैं आमलकी एकादशी:
रंगभरी एकादशी के दिन शिव-पार्वती के साथ साथ भगवान श्री हरि विष्णु और आंवले के पेड़ की भी पूजा की जाती है। इसलिए रंगभरी एकादशी को आमलकी एकादशी भी कहा जाता है। वही ये भी मान्यता है कि आंवले के पेड़ में भगवान विष्णु वास करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार आमलकी एकादशी के दिन आंवला और श्री हरि विष्णु् की पूजा करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पूजा करने का शुभ-मुहूर्त:
फाल्गुन माह की शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि, जो 13 मार्च रविवार को प्रातः 10 बजकर 22 मिनट पर शुरू होगा और समापन 14 मार्च, दिन सोमवार 12 बजकर 06 मिनट तक शुभ मुहूर्त रहेगा। वहीं पुष्य नक्षत्र 13 मार्च, रविवार सायं 6 बजकर 39 मिनट से शुरू होगा और 14 मार्च, सोमवार रात्रि 8 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। साथ ही उदयातिथि के अनुसार 14 मार्च को रंगभरी एकादशी मनाई जाएगी।
ऐसे करें भगवान विष्णु के साथ आंवले के वृक्ष की पूजा:
जो भी मनुष्य या स्त्री रंगभरी एकादशी का उपवास रखते है, उन सभी लोगों को स्नान ध्यान के पश्चात आमलकी/रंगभरी एकादशी व्रत को पूरे विधि-विधान से करने का संकल्प लेना चाहिए। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस दिन उपवास रखने और आंवले के वृक्ष की पूजा करने से सुख समृधि परिवार में बनी रहती है। धार्मिक मान्यताओं हैं कि आंवले के वृक्ष में त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) वास करते हैं। आंवले की वृक्ष की पूजा करने करने के लिए सबसे पहले जल,पुष्प,धूप, नैवेद्य अर्पित करते हैं। उसके बाद आरती कर वृक्ष की परिक्रमा करते हैं। इसके बाद आंवले का फल दान करना सौभाग्य प्रदान करता है। साथ ही श्री हरि विष्णु को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” का ज़प करना चाहिए। बता दें कि रंगभरी एकादशी के दिन श्री हरि विष्णु का पूजन और उपवास रखने से जीवन में समस्त पापों का नाश होता है साथ ही सुख-समृद्धि बनी रहती है।
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