फर्रुखाबाद–कौन कहता है की आसमां में सुराख हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों; ये लाइनें जन्मांध श्याम सुंदर पर सटीक बैठती हैं।
श्याम सुंदर कोई बहुत बड़ी हस्ती नहीं हैं, लेकिन वो एक असाधारण व्यक्ति हैं और असाधारण इसलिए क्योंकि उन्होंने कभी अपने आप को लाचार नहीं समझा, बल्कि आगे बढ़ कर परिवार का खर्च उठा रहे हैं। बिना आंखों के उन्होंने कुर्सी की कलाकारी सीखी। फिर पहले खुद दुकान करके कुर्सी बीनने लगे और अब सरकारी नौकरी कर रहे हैं। साथ ही सरकारी कुर्सियां बिन रहे हैं। फिलहाल फतेहगढ़ में तैनात हैं और करीब 20 साल से यहीं हैं। श्याम सुंदर बीते दिनों जब राजेपुर अमृतपुर में कुर्सी बिनने पहुंचे तो इनके हुनर को हर कोई कायल हो गया।
श्याम सुंदर कानपुर की डबल पुलिया के रहने वाले हैं। फतेहगढ़ में तैनात हैं इसलिए अब यहीं के हो कर रह गए हैं। श्यामसुंदर की ही तरह उनकी पत्नी भी जन्मांध हैं। इनके तीन बच्चे हैं।
(रिपोर्ट- दिलीप कटियार, फर्रुखाबाद )