न्यूज डेस्क– सीरिया दुनिया की सबसे खतरनाक जगहों में से एक है। यहां पर हर रोज करीब 50 बम किसी भी रूप में गिरते हैं। ये बम कब कहां गिरेंगे कोई नहीं जानता है। यह बम कितनों की जान लेंगे इसकी भी किसी को कोई खबर नहीं होती है।
बस बम का तेज धमाका और इसके बाद वहां से आने वाली चीख यहां की रोज-मर्रा जिंदगी का बेरंग हिस्सा बन गई है। हर रोज सैकड़ों की तादाद में यहां लोग बेघर होते हैं, नमालूम कितने लोग हर रोज यहां पर अपनों को खोते हैं। लेकिन इन सभी के बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं जो निस्वाोर्थ भाव से यहां पर लोगों की मदद को दौड़ पड़ते हैं। इन्हें यहां पर व्हाइट हेलमेट के नाम से जाना जाता है। यही है वास्त़व में मौजूदा दुनिया के रियल सुपर हीरो है, जो अपनों और अपनी जान की परवाह किए बिना दूसरों की मदद के लिए तुरंत पहुंच जाते हैं।
एक लाख लोगों को बचा चुका है व्हाइट हेलमेट
सीरिया में व्हाइट हैलमेट अब तक करीब एक लाख लोगों को बचा चुके हैं। यहां के अलेप्पोम से लेकर पूर्वी घोता तक सभी जगह यह लोग मदद के लिए जी जान से जुटे हैं। अब तक करीब 200 से अधिक व्हा इट हैलमेट धारी स्वयंसेवक बचाव कार्यकर्ता अपनी जान गंवा चुके हैं। इन लोगों की जितनी तारीफ की जाए कम ही होगी। खालिद फराह भी इन्हीं लोगों में से एक हैं। हर रोज यह उस तरफ दौड़ पड़ते हैं जहां पर बम गिरता है। इनका काम हमेशा से ही खतरनाक रहा है। हमेशा गिरती इमारतों या ध्वस्तन हुई इमारतों के बीच यह जिंदगी तलाशते हैं और उसको बचाने के लिए जी जान एक कर देते हैं।
खालिद के लिए हर रोज एक जैसा ही होता है। एक वाकये को वह आज तक नहीं भूले हैं। उस दिन एक बैरल बम ने एक इलाके में कई इमारतों को ध्वनस्तल कर दिया था। उनको एक इमारत के मलबे में दबे दो परिवारों को सकुशल निकालने की जिम्मेदारी दी गई थी। वह नहीं जानते थे कि मलबे में कितने लोग जिंदा मिलेंगे। लेकिन काफी मशक्कत के बाद उन्हों ने वहां से कुछ लोगों को जिंदा बचाने में कामयाबी पा ली थी। इसके बाद उन्हें जानकारी मिली की एक महिला अब भी मलबे में दबी है। उनके लिए उसको बचाना किसी चुनौती से कम नहीं था। लेकिन यहां भी वह कामयाब हुए। लेकिन जब उस महिला ने अपनी दो स्प ताह के बच्चे का जिक्र किया तो खालिद के पांव के नीचे से जमीन ही मानो निकल गई थी। महिला बार-बार अपने बच्चे को बचाने की गुहार लगा रही थी। खालिद पर इस दुधमुंहे बच्चे को तलाशने और फिर बचाने की बड़ी जिम्मेदारी थी।
12 घंटे बाद सुनाई दी बच्चे की आवाज
लेकिन बच्चेे को देखते हुए मलबा हटाने और वहां खुदाई करने में काफी एहतियात बरती जा रही थी। ऐसे में वक्तह भी काफी जा रहा था। काफी मशक्कात के बाद उन्हें बच्चेे के रोने की आवाज सुनाई दी। खालिद ने मलबे के अंदर जाने का फैसला किया। उनको इस बात का भी डर सता रहा था कि कहीं उनके मलबे को हटाने के चक्केर में बच्चे के ऊपर मलबा न गिर जाए। यदि ऐसा हुआ तो वह महिला को मुंह नहीं दिखा पाएंगे। खालिद के लिए यह वक्त काफी भारी था। हर कोई पूरी सावधानी बरत रहा था। आखिरकार खालिद वहां तक पहुंचने में कामयाब हो गए जहां से वह बच्चे को देख पा रहे थे। लेकिन उस तक उनका एक हाथ ही पहुंच पा रहा था। काफी मशक्कत के बाद खालिद ने बच्चे से लिपटे कपड़े को खींचना शुरू किया और दो सप्ताह के बच्चे को सकुशल मलबे के बीच से निकाल लिया। बच्चे को सकुशल देख वहां पर खुशी की लहर दौड़ पड़ी और खालिद की आंखों से आंसू छलक गए।
बम से भी ज्यादा खतरनाक था वो बच्चा
खालिद से जब ये पूछा गया कि क्या उस दिन के बाद वह उस बच्चे को देखने के लिए गए तो उनका कहना था कि इसके लिए वक्तउ ही नहीं मिल सका। हर रोज सीरिया में ऐसी ही परिस्थितियां बनती हैं। ऐसे में वक्त बेहद मायने रखता है। खालिद को उस बच्चे को बचाने में 12 घंटे से ज्यादा का समय लगा था। तीन मंजिला इमारत के मलबे में बच्चे को खोजना काफी जोखिम भरा था। खालिद कहते हैं कि बैरल बम से ज्यादा ताकतवर निकला था वह बच्चाा जिसने मौत को भी मात दे दी थी। खालिद इस टीम के अकेले मैंबर नहीं हैं। इसमें इस जैसे कई जांबाज हैं।
इस शख्स ने मलबे से निकाला था अपने बेटे का शव
अबू हसन भी इन्हीं में से एक हैं। करीब दो वर्ष पहले अबू हसन ने बम से ध्वस्त हुई इमारत से अपने ही बच्चें का शव निकाला था। उन्हेंल इस बात का अंदाजा नहीं था कि यहां उनका बेटा इस तरह से मिलेगा। वह अपने बेटे के शव को लेकर आधा घंटे तक मलबे में बैठे रहे उनकी आंखों में आंसू थे लेकिन जुबान बंद हो चुकी थी। उस दर्द की पीड़ा को हर कोई नहीं समझ सकता है। अब हसन उस हादसे को भुलाकर आज भी अपनी टीम के साथ मुश्किल में पड़े लोगों को बचाने एक आवाज में दौड़ पड़ते हैं।