एटा –जिले के नयाबॉस गॉव के ग्रामीण हैरान-परेशान है। गल्लियों में सन्नाटा छाया रहता है, बच्चे घरों में कैद से हो गये है और बुर्जुग लाठी-डंडे लेकर घरों की रखवाली करने को विवश है। जिस मुसीबत से छुटाकार पाने के लिए उन्होंने लंगूर को पाला वो भी घायल हो चुका है…
उसके खाने पीने और उपचार भी ग्रामीण कर तो रहे है लेकिन जिला प्रशासन और वन विभाग की उदासीनता के चलते नयाबांस गॉंव के ग्रामीण अब इस जुगत में है कि आखिर अब वो करें भी तो क्या जिससे उनकी परेशानियां दूर हो सके। आखिर वजह क्या है और इस गॉंव के ग्रामीणों की क्या समस्या है जिसकी खातिर उन्हें रखवाली करनी पड़ रही है, आईये देखते है एटा से “यूपी समाचार न्यूज” से आर.बी.द्विवेदी की ये खास रिपोर्ट…
एटा के जिला मुख्यालय से करीब पच्चीस किमी दूर मिरहची थाना क्षेत्र का ये गॉंव है नयाबॉंस। पिछले करीब एक साल से इस गॉंव के लोगों की परेशानी का सबब है हजारों की तादात में यहॉं आये बन्दर। इन बन्दरों का ये आतंक ही है कि लोग घरों में कैद से हो गये है। बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे है और जाते भी है तो घर के बडे-बुर्जुगों के साथ वो भी तब जब वे लाठी लेकर जाये नहीं तो यहॉं के हिंसक हो चुके बंदर उन पर कब हमला कर दे, ये कोई नहीं जानता।
बता दें कि गॉंव में अब तक दो दर्जन से ज्यादा लोग इन हिंसक बंदरों के आतंक का शिकार हो चुके है। यशवेद की छत पर बैठी पत्नी सुनीता इन हिंसक बंदरों की कहानी खुद ब खुद बयां कर रही है जब बंदरों के झुंड ने छत पर हमला कर दिया और वो छत से ऐसे नीचे गिरी कि आज साल भर बाद भी वो बिस्तर से नहीं उठ सकी। हिंसक बंदर बच्चों और बुर्जुगों पर देखते ही हमला कर देते है क्योंकि ये उनका प्रतिरोध नहीं कर पाते। गॉंव में हजारों की तादाद में बंदर से छुटकारा पाने की ग्रामीणों को एक आस और एक उम्मीद की किरण तब दिखी जब गॉंव में एक लंगूर आ गया।
ग्रामीणों को मानों जैसे बिन मांगे मुराद मिल गयी हो और ग्रामीण ने उसका नाम भोलू रख दिया। भोलू के खौफ और चहलकदमी के चलते कुछ दिनों तक बंदर गॉंव से दूर रहे लेकिन कुछ दिन पूर्व इन हिंसक बंदरों के झुंड ने भोलू लंगूर पर ही हमला कर दिया और उसे बुरी तरह से घायल कर दिया।
भोलू लंगूर की हालत दिन पर दिन खराब हो रही है और ग्रामीण उसे खाना पीना और खुद उसका उपचार भी कर रहे है लेकिन उसका ज्यादा असर होता नहीं दिख रहा है। ग्रामीणों ने गॉंव में हिंसक बंदरों की दास्तां जिला प्रशासन और वन विभाग से भी की लेकिन नतीजा ढांक के तीन पात ही रहा। अब ऐसे में जहॉं लंगूर के खाने पीने और दवा का जिम्मा खुद ग्रामीण कर रहे है वहीं उन्हें इस बात की चिंता है कि अब वो करें भी तो क्या जिसके चलते उन्हें इन हिंसक बंदरों से निजात मिल सके।
(रिपोेर्ट-आर.बी.द्विवेदी,एटा)