न्यूज़ डेस्क– शहीदे आजम भगत सिंह के शहादत का स्मारक पाकिस्तान सीमा पर, फिरोजपुर शहर से 10 किलोमीटर दूरी पर बने हुसैनीवाला बार्डर पर है। यहां पर शहीद भगत सिंह के अलावा सुखदेव, राजगुरु और बटुकेश्वर दत्त जैसे आज़ादी के दीवानों की समाधि है।
यहां पर वह पुरानी जेल भी है, जहां भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव लाहौर जेल में शिफ्ट करने से पहले रखा गया था। अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या के दोष में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई तो इसके विरोध में पूरा लाहौर बगावत के लिए उठ खड़ा हुआ। ब्रिटिश सरकार ने निश्चित तारीख से एक दिन पहले 23 मार्च 1931 को शाम 7 बजे तीनों को फांसी दे दी। उसके बाद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शवों के टुकड़े-टुकड़े कर अंग्रेज उन्हें लाहौर जेल की पिछली दीवार तोड़कर सतलुज दरिया के किनारे लाए और रात के अंधेरे में यहां बिना किसी रीति रिवाज के जला दिया। भगत सिंह के साथी बटुकेशवर दत्त का निधन 19 जुलाई 1965 को दिल्ली में हुआ। उनकी अंतिम इच्छा अनुसार उनका अंतिम संस्कार भी इसी स्थान पर किया गया। इसी पवित्र स्थान पर भगत सिंह की मां विद्यावती जी का भी अंतिम संस्कार हुआ।
पाकिस्तान से लगने वाली सीमा से मात्र एक किलोमीटर पर हुसैनीवाला स्थित समाधि स्थल 1960 से पहले पाकिस्तान के कब्जे में था। जन भावनाओं को देखते हुए 1950 में तीनों शहीदों की समाधि स्थल पाक से लेने की कवायद शुरू हुई। 17 जनवरी, 1961 को फाजिल्का के 12 गांव व सुलेमान की हेड वर्क्स पाकिस्तान को देने के बदले शहीद त्रिमूर्ति से जुड़ा समाधि स्थल भारत को मिल गया। सतलुज दरिया के करीब बने इस समाधि स्थल को राष्ट्रीय शहीद स्मारक के रूप में 1968 में विकसित किया गया।
हुसैनीवाला से होकर एक समय में रेल लाइन लाहौर तक जाती थी। पर पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध के दौरान ये रेल मार्ग बंद कर दिया गया। कभी यहां सतलुज दरिया पर बने रेल पुल को भी तोड़ दिया गया। अब फिरोजपुर से हुसैनीवाला में ही आकर रेल लाइन खत्म हो जाती है। रेलवे ट्रैक को ब्लॉक कर यहां लिखा गया है- दि एंड ऑफ नार्दर्न रेलवे। पूरे साल में एक दिन यानि 23 मार्च को फिरोजपुर से एक स्पेशल ट्रेन बार्डर के लिए चलती है। यहां हर साल मार्च में शहीदी दिवस के मौके पर बड़ा मेला लगता है।