अयोध्या–अयोध्या विवाद पर आज सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया।अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन रामलला और सुन्नी वक्फ बोर्ड को वैकल्पिक जगह ने की बात कही।
ऐसे में हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं जो वर्षों से अकेले राम मंदिर की कार्यशाला में मंदिर निर्माण के लिए पत्थरों पर नक्काशी कर रहा था, लेकिन सुप्रिम कोर्ट के फैसले से 4 महीने पहले ही इस दुनिया को अलविदा कह गया।
बताते हैं कि एक जमाने में राम मंदिर के पत्थरों को तराशने और इनपर बारीक चित्रकारी करने का काम 150 मजदूर करते थे, लेकिन कोर्ट में फैसले को लेकर हो रही देरी के बीच मजदूरों ने काम भी छोड़ दिया। काम करने वाले मजदूरों में रजनीकांत भी थे, जो 1990 में 21 साल की आयु में अपने ससुर अनुभाई सोनपुरा के साथ गुजरात से अयोध्या आए थे। मंदिर निर्माण के लिए तराशे जाने वाले पत्थरों के प्रति रजनीकांत का लगाव इतना था कि कई बार ढाई फीट के पत्थर को तराशने और इसपर नक्काशी करने में उन्हें दो महीने तक लग जाते थे। लेकिन जुलाई में रजनीकांत के निधन के बाद से ही अयोध्या में पत्थरों को तराशने का काम बंद हो गया।
जानकारी के मुताबिक राम मंदिर निर्माण के लिए तराशे जाने वाले पत्थरों के प्रति रजनीकांत का लगाव इतना था कि कई बार ढाई फीट के पत्थर को तराशने और इसपर नक्काशी करने में उन्हें दो महीने तक लग जाते थे।