लखनऊ–राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व शिक्षा मंत्री डा. मसूद अहमद ने राहत पैकेज के सन्दर्भ में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज की प्रथम किश्त के रूप में वित्त मंत्री द्वारा जो लघु एवं मध्यम वर्ग के उद्योगों को सहयोग देने की घोषणा की है उसको ऊँट के मुँह में जीरा के अतिरिक्त कुछ नहीं कहा जा सकता है क्योंकि दो महीने बन्द रहने से ये उद्योग समाप्ति के कगार पर खडे़ हैं।
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इनकी पूँजी का बडा़ हिस्सा बाजार में फँस गया है और जो हिस्सा शेष था उसमें से कर्मचारियों का वेतन दिया गया और अपने परिवार का पालन पोषण किया गया। ऐसे उद्योग धन्धों की तादाद को देखते हुए प्रति यूनिट लगभग छः लाख का ही ऋण सम्भव होगा जो उद्योग के पुनर्जीवन के लिए बहुत कम है।
डा.अहमद ने कहा कि इन इकाइयों के साथ ही आवश्यकता है कि लाखों प्रवासी मजदूरों के भरण पोषण और उनकी सुरक्षा की व्यवस्था की जाय जिनकी स्थिति उद्योगपतियों और सरकारों की अनदेखी ने बदतर कर दी है।विभिन्न प्रदेशों से सड़क मार्ग से पैदल, साइकिल आदि के साथ साथ ट्रकों आदि से लाखों मजदूरों का पलायन इसी अनदेखी का परिणाम है।बैलगाड़ी पर अपने परिवार को लेकर एक ओर बैल के स्थान पर खुद बैलगाड़ी खींचने वाला मजदूर किसी को नजर नहीं आ रहा है।ऐसे अनदेखी करने वालों को सत्ता में बने रहना देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा।
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रालोद प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि कृषि प्रधान देश में किसान और मजदूर देश की अर्थ व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं और वर्तमान सरकारें इनकी उपेक्षा करके अर्थ व्यवस्था सुधारने के सपने देख रही हैं।उन्होंने सरकार से माँग करते हुए कहा कि प्रदेश के प्रत्येक मजदूर और छोटे किसानों को कम से कम 6000 रु.की तत्काल राहत दी जाय तथा गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के तीन माह के बिजली के बिल माफ किए जायें ताकि परिवार के भोजन और आवश्यक सरकारी देय से राहत मिल सके।