फर्रुखाबाद–सावन के तीसरे सोमवार के अवसर पर फर्रुखाबाद के ऐतिहासिक शिवालयो में सुबह से ही भक्तों का तांता लगा है। भक्त भोले बाबा को अपनी भक्ति से प्रसन्न करने के लिए उनका जलाभिषेक कर रहे हैं। उन्हें पुष्प,बेलपत्र और धतूरा अर्पित कर रहे हैं।फर्रुखाबाद में काशी के बाद सर्वाधिक शिव मंदिर हैं इसलिए इसे अपरा काशी भी कहा जाता है |
फर्रुखाबाद के ग्राम पुठरी स्थित प्राचीन शिवालय का वैसे तो कोई प्रमाणिक इतिहास नहीं है। लेकिन जनश्रुति के अनुसार लगभग चार सौ वर्ष पूर्व गांव के बाहर एक टीला था। जिसके ऊपर झाड़ झंकाड़ उगे थे। इसी टीले पर प्रतिदिन एक गाय चरने जाती थी एवं बीच में खड़ी होती थी। गाय के थनों से स्वत: दूध की धार टपकने लगती थी। यह देख ग्रामीणों ने टीले की साफ सफाई कर खुदाई करायी तो शिवलिंग निकला। ग्रामीणों ने वहां पूजा अर्चना शुरू कर दी। जानकारी होने पर फर्रुखाबाद निवासी सदानंद तिवारी ने मंदिर निर्माण कार्य की नींव रखकर निर्माण कराया। धीरे-धीरे मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक पहुंच गयी और लोगों ने मंदिर आकर पूजा अर्चना शुरू कर दी। मंदिर की पूजा कार्य में सबसे पहले रामभारती, लाल भारती, वीर भारती, गंगा भारती, राज भारती ने जिम्मेदारी निभायी। वर्तमान में सुरेश भारती एवं देवेंद्र भारती शिव आराधना में लग शिव की सेवा कर रहे हैं। मंदिर परिसर में ही कालेश्वर महादेव एवं दुर्गा मंदिर का भी निर्माण कराया गया है।
सावन में पूजा अर्चना के लिए मंदिर परिसर की साफ सफाई एवं रंगाई पुताई की व्यवस्था की गयी है। भगवान शिव के चमत्कारिक शिवलिंग को फूल व बेल पत्रों से सजाया जाता है। महंत एवं पुजारी द्वारा सुबह शाम आरती की जाती है। शिव भक्तों के आवागमन व पूजा अर्चना के समय मंदिर के तीनों द्वार खोल दिए जाते हैं। शिव का भोग व प्रसाद वितरण किया जाता है। मंदिर में पूजा अर्चना के लिए भोगांव, मैनपुरी, बेवर, फर्रुखाबाद, अलीगंज व आसपास के ग्रामों के लोगों के साथ अन्य जनपदों से कांवरियों का आना जाना रहता है। जिससे पूरा गांव शिवमय बना रहता है।
महंत सुरेश भारती ‘फागुनी मास में शिवभक्तों की भीड़ होने के कारण सुविधा की पूरी व्यवस्था की जाती है। महिलाओं, पुरुषों व बच्चों के लिए तीनों कपाट खोले जाते हैं। आरती के समय भीड़ के लिए उचित प्रबंध किया जाता है।’
(रिपोर्ट-दिलीप कटियार, फर्रूखाबाद)