स्कूलों में शारीरिक दंड पर एक बार फिर लगा प्रतिबंध (2)

लखनऊ — स्कूलों में शारीरिक दंड पर एक बार फिर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इस तरह की शिकायत आने पर स्कूल प्रशासन जिम्मेदार होंगे। इस संबंध में अपर शिक्षा निदेशक (माध्यमिक) विनय कुमार पांडेय ने सभी मंडलीय संयुक्त शिक्षा निदेशकों को पत्र जारी कर निर्देशों का कड़ाई से पालन कराने के लिए कहा है। 

गौरतलब है कि पिछले कुछ महीनों में राजधानी के निजी स्कूलों में बच्चों को प्रताड़ित करने जैसी तमाम घटनाएं सामने आई हैं। बीते अगस्त में पीजीआई के एक निजी विद्यालय में कक्षा तीन के एक छात्र को क्लास टीचर ने सिर्फ इसलिए थप्पड़ों से पीटा था क्योंकि वह ड्राइंग बनाने की चक्कर में प्रजेंट मैम बोलना भूल गया था। जिसमें आरोपी शिक्षिका के खिलाफ अभिभावक ने मुकदमा भी दर्ज कराया था। इसी तरह मड़ियावं के एक विद्यालय में भी छात्र को मोजे की लास्टिक ठीक न होने पर पीटने का मामला भी समाने आया था।

इस मामले में भी पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई थी। अपर शिक्षा निदेशक के पत्र के मुताबिक राष्टड्ढ्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पत्र एवं निर्देश जारी किए जाने के बाद भी आए दिन स्कूलों में शारीरिक दंड के मामले हो रहे हैं। इसलिए शारीरिक दंड पर प्रतिबंध संबंधी शासनादेश को पुनरू परिचालन के निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने साफ कहा है कि जनपदीय अधिाकरी इन आदेशों का कड़ाई से पालन करें।साथ ही इसकी रिपोर्ट शासन और अपर शिक्षा निदेशक को उपलब्ध कराएं। बच्चों को दौड़ाना, फटकारना, घुटनों के बल बैठाना, छड़ी से पीटना अथवा तमाचा मारना।

 बच्चे को चिकोटी काटना, यौन शोषण, क्लास रूम में अकेले बंद कर देना, बिजली का झटका देना, अपमानित करना, नीचा दिखाना, शारीरिक एवं मानसिक रूप से परेशान करना। प्रत्येक स्कूल जिसमें छात्रावास, हॉस्टल, बाल संरक्षण गृह एवं अन्य सार्वजनिक संस्थाएं शामिल हैं, एक ऐसा फोरम बनाया जाए जहां बच्चे अपनी बात रख सकें। प्रत्येक स्कूल में एक शिकायत पेटिका भी होनी चाहिए, जिसमें छात्र शिकायत पत्र डाल सके। अभिभावक शिक्षक समिति नियमित रूप से प्राप्त शिकायतों की समीक्षा करे। शिक्षा विभाग ब्लॉक, जनपद एवं राज्य स्तर पर ऐसी प्रक्रिया स्थापित करे जिससे बच्चों की शिकायतों एवं उन पर कार्यवाही की समीक्षा की जा सके।

 

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