महिला आरक्षण विधेयक, 2023 मंगलवार को लोकसभा में पेश किया गया। इस विधेयक का उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की कुल सीटों में से एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करना है। इनमें से एक तिहाई सीटें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से आने वाली महिलाओं के लिए होंगी। ये सीटें 15 साल के लिए आरक्षित रहेंगी। इस बिल को सरकार ने ‘नारी शक्ति वंदन कानून’ नाम दिया है।
इसस पहले 2008 में राज्यसभा में पेश किया गया था बिल
परिसीमन के बाद विधेयक के प्रावधान लागू होंगे रोटेशन के आधार पर सीटें आरक्षित की जाएंगी। विधेयक पारित होने के बाद परिसीमन पूरा होने के बाद ही प्रावधानों को लागू किया जा सकेगा। विधेयक पारित होने के बाद होने वाली पहली जनगणना में एकत्र आंकड़ों के आधार पर परिसीमन किया जाएगा।
इस बिल को कैबिनेट ने सोमवार को मंजूरी दे दी। इससे पहले साल 2008 में महिला आरक्षण बिल राज्यसभा में पेश किया गया था। और 2010 में यह वहां से पारित हो गया। लेकिन यह लोकसभा से पारित नहीं हो सका।
पीएम मोदी ने सांसदों से इस बिल को पास करने की अपील की लोकसभा में अपने भाषण के दौरान पीएम मोदी ने सभी सांसदों से इस बिल को पास करने की अपील की। पीएम मोदी ने कहा कि ‘आज हमारी सरकार एक बड़ा संविधान संशोधन विधेयक पेश कर रही है। ‘नारी शक्ति वंदन कानून’ से हमारा लोकतंत्र मजबूत होगा। मैं दोनों सदनों के सभी सांसदों से अनुरोध करता हूं कि वे इस विधेयक को सर्वसम्मति से पारित करें।’ महिला आरक्षण बिल का सपना कई सालों से अधूरा है। अटल जी की सरकार के दौरान इसे पास कराने के लिए जरूरी डेटा नहीं मिल पाया था।
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कब लागू होगा बिल?
अगर ये बिल कानून बन भी गया तो भी इसे लागू होने में वक्त लगेगा। बताया जा रहा है कि यह कानून परिसीमन के बाद लागू होगा। 2026 के बाद देश में लोकसभा सीटों का परिसीमन होना है। इस परिसीमन के बाद ही महिला आरक्षण लागू किया जाएगा। यानी 2024 के लोकसभा चुनाव के वक्त ये कानून नहीं रहेगा।
संसद और विधानसभाओं में कितनी महिलाओं की संख्या
संसद और अधिकांश विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 15 प्रतिशत से भी कम है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 19 विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी 10 फीसदी से भी कम है। वर्तमान लोकसभा के 543 सदस्यों में से महिलाओं की संख्या 78 है, जो 15 प्रतिशत से भी कम है। राज्यसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगभग 14 प्रतिशत है। कई सभाओं में महिलाओं की भागीदारी 10 प्रतिशत से भी कम है।
जिन विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 प्रतिशत से अधिक है वे हैं बिहार (10।70 प्रतिशत), छत्तीसगढ़ (14।44 प्रतिशत), हरियाणा (10 प्रतिशत), झारखंड (12।35 प्रतिशत), पंजाब (11।11 प्रतिशत), राजस्थान (12 प्रतिशत), उत्तराखंड (11।43) प्रतिशत), उत्तर प्रदेश (11।66 प्रतिशत), पश्चिम बंगाल (13।70 प्रतिशत) और दिल्ली (11।43 प्रतिशत)। गुजरात विधानसभा में 8।2 प्रतिशत महिला विधायक हैं जबकि हिमाचल प्रदेश विधानसभा में केवल एक महिला विधायक है।
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